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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? चोट नहीं आई। उसका मुख्य कारण यह था कि इस घटना के समय वैद्यराज नवकार मंत्र के स्मरण में एकाग्र बन गये थे। वैद्यराज कोल्हापुर के मि. शाह के सम्पर्क में आये वि.सं. 2015 में कोट में शतावधानी पंन्यासजी म. श्री कीर्तिविजयजी गणिवर्य के प्रवचन सुनने का योग प्राप्त किया। उस समय चल रहे " अमर कुमार और नवकार मंत्र का प्रभाव" पर से वे प्रभावित होकर नवकार में स्थिर बने । नवकार की गहरी श्रद्धा मजबूत बनी वहां से उन्होंने नवकार मंत्र गिनने की शुरुआत की। वे प्रतिदिन एक हजार नवकार जिनमन्दिर में बैठकर ही स्थिरता से गिनते हैं। उन्होंने नवपद जी की नौ ओलियाँ भी पूर्ण की हैं। (" प्रसंग परिमल " ) लेखक/संपादक शतावधानी प. पू. आ. भ. श्री विजयजकीर्तिचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. - ( नवजीवन देने वाला नवकार दस वर्ष पहले की बात है। गर्मी के मौसम में हमेशा की तरह मेरा पंजाबी मित्र मेरी दुकान पर आया था। वह आर्थिक रूप से दुःखी, जीवन से उबा हुआ, संबंधियों द्वारा छोड़ा हुआ, दुःख से पीड़ित, करुणा पात्र था। जबकि वह बुद्धि से होशियार था। कल्पनाशक्ति में प्रवीण था। मशीनरी की फिटिंग में कुशल कारीगर था। परन्तु रूप एवं रूपये के पीछे वह मान भूल जाता । पैसे मिले कि तुरंत गलत रास्त से पूरे करने, रूपवती ललना मिली कि तुरंत विषय विकार का शिकारी बन जाता। ऐसा था, उसका जीवन ऐसी थी, उसके जीवन की पद्धति । एक दिन की बात है। मेरी टेबल पर " सचित्र नवकार" हिन्दी पुस्तक पड़ी थी। उसकी छपाई ने, उसके आकर्षक चित्रों ने उसके सरल विवेचन ने और चमकते कागज ने मित्र को ललचाया। मित्र ने पुस्तक को 158
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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