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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अनुभव की यह घटना पेश की। जिसे सुनकर अनेक आत्माओं के हदय में नवकार महामंत्र के प्रति भारी श्रद्धा पैदा हुई। द्रौपदी बेन के वक्तव्य का सार यहां पेश किया गया है। शास्त्रों में नाग, समड़ी, चूहा, बन्दर , बैल, वगैरह अनेक तिर्यचों को भी अन्त समय में नवकार के श्रवण से देवगति आदि सद्गति प्राप्त होने की बात पढ़ने को मिलती है। उसकी यथार्थता उपर्युक्त अर्वाचीन घटना पढ़ने से अवश्य समझ में आयेगी। एक बार गाय -देवी ने द्रौपदीबहन को पूछा कि, "जब तुम्हारी आयुष्य पूर्ण होगी तब तुम्हारी मृत्यु किस प्रकार से होना तुम चाहती हो?" द्रौपदी बहन ने कहा कि, "मैं चाहती हूं कि, मैं रोग आदि से पीड़ित होकर और दूसरों को भी परेशानी हो इस प्रकार नहीं मरूं, किन्तु सहज भाव से ही मेरे प्राण जायें।" और ऐसा ही हुआ। कुछ साल पहले द्रौपदी बहन का 'हार्ट एटेक' से अवसान हुआ है। - संपादक) अब तुम नवकार के करोड़पति बनो ___ मैं पू. पंन्यासप्रवरश्री भद्रंकरविजयजी म. सा. के संसारी भतीजे श्री चिमनभाई भोगीलाल का पुत्र हूँ। संवत् 1985 में साहेबजी का | जामखंभालिया के पास के गांव में चातुर्मास था। तब मैं पर्युषण करने वहां गया था। उस समय साहेब ने मुझे बिठाकर पूछा, "हसमुख! इतनी दौड़भाग करता है, कुछ कमाता है कि नहीं?" मैंने कहा, "साहेब, सुबह से रात तक नौकरी करता हूँ। मुश्किल से 250 रुपये मासिक कमाता हूँ। साहेब, कुछ ज्यादा कमा सकुं, ऐसा कोई उपाय बताओ।" साहेब ने उत्तर दिया, "जब तक तेरे पूर्व के पापों का क्षय नहीं होगा, तब तक कुछ नहीं मिलेगा। पाप क्षय के लिए तो नवकार एटम बम्ब के समान है। उससे एक साथ इतनी बड़ी तादाद में पापों का क्षय होगा, कि जितने तुम नये पापों का बंध नही कर सकोगे। इससे तेरे पुण्य का बेलेन्स बढ़ने लगेगा और सभी वस्तुएं तेरे आस-पास घूमने लगेंगी। "उनकी बात मुझे पसन्द आ गयी। मैंने कहा, "आज से मैं नवकार की शरण में जाता हूँ। मुझे आशीर्वाद दो।" उन्होंने मुझे प्रतिदिन एक माला गिनने का सूचन कर, नवकार मंत्र का दान किया। वह एक-एक पद बोलाते गये, उस प्रकार मैं 137
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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