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________________ • जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? हटा सकते हैं, यह सब जानते थे। इस घटना को घटित हुए दस दिन हुए, सभी जगह खोजबीन हुई, किन्तु अरोड़ी गावं के वासियों के प्रयत्न निष्फल हुए । ग्यारहवें दिन मध्यरात्रि में पीयूष नवकार मंत्र का जाप कर रहा था। वहां प्रत्यक्ष तेजपुंज का गोला उसके सामने दिखाई दिया। उसे भी आश्चर्य हुआ। यह प्रकाशित गोला गोल-गोल घूमकर छोटा होता जा रहा था और पास में आ रहा था। वह इस बारे में कुछ सोचे, उससे पहले ही छोटा एक प्रकाशित बिन्दु उसके मुंह द्वारा पेट में चला गया, वह उसने प्रत्यक्ष देखा । यह घटना घटित होने के बाद उसे नीन्द आ गई और स्वप्न आया कि, 'पीयूष, तुम डरना नहीं। तेरे तप के प्रभाव से तुम्हें बचाने वाले कल सवेरे आ पहुंचेगें। तू समझ, तेरे लम्बे पुण्य के बल से दूसरे जीव भी बच जायेंगे।' उतने में तो वह नीन्द में से जगा तब प्रातः काल हुआ है ऐसा लगा । इस तेजपुंज का असर उसी समय राधनपुर शहर के कॉलेज के प्रिन्सिपल जे.जे. साहब को हुआ। वे उम्र में दूसरे प्रिन्सिपल साहब से छोटे थे। वे भी विविध प्रकार के खेलकूद के शौकिन व मायालु थे एवं बातें करते तो जैसे मुंह से अमृत वर्षा हो रही हो वैसा लगता था। धर्म के संस्कार उन्हें पूर्वजों से मिले हुए थे। इस प्रकार का स्वभाव होने के कारण उनको भी उसी समय प्रथम उगता सूर्य अत्यन्त घुमता हुआ दिखाई दिया और थोड़ी देर बाद तेजपुंज बन गया। उन्होंने स्वप्न में देखा कि, कोई दिव्य पुरुष ने एक ही आवाज में कहा कि, " जयन्ति शाह ! तू जाग, जान ले कि तेरे ही एक सौ तीन बालक आज से ग्यारह दिन पहले भूकम्प से शंखलपुर गांव से पांच किलोमीटर दूर गुफा में जीवित हैं, वे अरोड़ी गांव के हैं। गुफा का द्वार भूकम्प से बन्द हो गया है। वहां अनेक शिलाएं हैं, जिससे वह गुफा कहां है - वह प्रश्न तुझे सतायेगा । परन्तु मैं तुम्हें सबूत दे देता हूं कि वहां जाते ही दायीं बाजू के रास्ते पर हजारों मण की शिला आयेगी और उस शिला का तुम निरीक्षण करोगे तो तुझे उस पर कुदरती रूप से खुदे अक्षरों में म...हा...वी...र लिखा होगा। उस शिला के ऊपर लम्बी तिरछी आधे ईन्च की दरार है। उससे वे सभी बच गये हैं। वहां तेरे कॉलेज के विद्यार्थियों 132
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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