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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? भयंकर आवाजें सुनाई देनें लगीं और थोड़ी देर बाद कोई छाती पर बैठकर डराने लगा, "तेरा नवकार छोड़ती है या नहीं?" पू. गुरुवर्या श्री ने निडरतापूर्वक कहा " मर जाउंगी, फिर भी अपने जीवनसाथी नवकार को नहीं छोडूंगी। यह भवोभव का मेरा साथी है, इसलिए इसका त्याग किसी भी संयोगों में नहीं करूंगी !!! " ऐसी बहस लगभग बीस मिनट तक चली। परन्तु पू. गुरुवर्या श्री की निश्चलता देखकर अन्त में सब शान्त हो गया और कोई दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। उसने कहा, "मैंने आपको बहुत परेशान किया है। कृपा करके मुझे माफ कर दो। उन्होंने कहा " मेरी ओर से माफी ही है, परन्तु इस प्रकार दूसरे किसी को परेशान नहीं करना और धर्म को स्वीकार कर लेना।" , JJ "तथास्तु" कहकर वह अंतर्धान हो गया था ! ! ! " समवसरण के दर्शन हुए" एक बार पू. गुरुवर्या श्री अपनी रत्नाधिक साध्वीजियों के साथ शंखेश्वर गये हुए थे। कुल चार ठाणे थे। पू. गुरुवर्या श्री की शंखेश्वर में अट्ठम करने की खूब भावना थी, परन्तु संयोगवशात् बड़ों की तरफ से अनुमति न मिल सकी । पूज्य श्री जब राधनपुर पहुंचे तब वह अट्ठम की भावना के साथ रात्री में नवकार महामन्त्र का स्मरण कर निद्राधीन हुए, और उन्होंने स्वप्न देखा, "एक बड़े हॉल में बहुत साध्वीजी विराजमान थीं। वहां अचानक एक बड़ा नाग आया, जो अत्यन्त ही चमकदार तथा कान्तिमय था । पू. गुरुवर्या श्री ने अन्य साध्वीजियों से पूछा, "ऐसे बड़े नाग को देखकर आपको भय नहीं लगता। तब वयोवद्ध साध्वीजी ने कहा ' यह तो धरणेन्द्र देव हैं, इसलिए हमें भय नहीं लगता । JJ उतने में एक छोटा सा बालक रोता- रोता वहां आया। पू. गुरुवर्या श्री उसे उठाने के लिए जाते हैं, तब कोई उन्हें कहता है, "यदि तुम इस बालक को उठाओगे तो यह नागदेव तुम्हें डंक मारेंगे।" पूज्य श्री ने कहा, 119
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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