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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - यह सरदार की आज्ञा थी। सिपाही ने विराट को कई प्रकार से समझाया कि, 'विराट! जो तुम सरदार के आज्ञांकित होकर रहोगे, तो तुम्हें बस्ती में किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा। सरदार खुद अपनी विरासत और बस्ती का सार्वभौमत्व तुम्हें सौंपना चाहते हैं। परन्तु इस सिपाही की प्रार्थना कामयाब नहीं हुई। विराट सामने से सिपाही को समझाने लगा कि, "तुम मुझे गिरफ्तार करके ले जाओगे, इससे तुम्हें क्या फायदा है? मेरे तन-बदन को देखो। अभी मैं बालक हूँ। अभी मैं अविकसित गुलाब हूँ। तुम मुझे पकड़ लोगे, तो मेरे सोचे हुए रंगीन अरमान बिखर जायेंगे। मेरे अरमानों का आलम नष्ट हो जायेगा। नहीं चाहिये मुझे यह सार्वभौमत्व!!! मुझे चाहिये केवल आजादी! अनमोल आदिनाथ और प्राण प्यारा नमस्कार!!!" विराट इतना बोलकर रुक गया, किन्तु उसके शब्दों में जोश था, नहीं कि आजादी की भीख मांगती लाचारी! सिपाही विराट का जोश देखेंकर स्तब्ध बन गया। वह सोचने लगा कि, 'क्या छोटे बालक में भी ऐसी नीडरता, ऐसी जवांमर्दी, ऐसा जोश और ऐसा उत्साह हो सकता है? क्या ऐसे बालक को गिरतार कर सरदार के समक्ष पेश करना महापाप नहीं? तो फिर में क्यों यह महापाप कर अपनी मानवता को कुचल दूं। जाने दो! नहीं गिरफ्तार करना इस बालक को! सरदार से कह दूंगा कि, 'आसपास की धरती के कण-कण में विराट की खोजबीन की, परन्तु विराट की परछाई भी नहीं मिली!' सिपाही ने घूर कर देखा तो विराट के मुख पर कोई मंत्र-जप चल रहा था। उसने कहा "तू तेरे तय किये हुए मार्ग पर आगे बढ़ विराट! मैं पल्ली में वापिस जाता हूं और कह दूंगा कि, 'नहीं मिला विराट!' सिपाही पीछे मुड़ा। विराट के उर-उदधि में उमंग की ऊर्मियां उछलने लगीं। उसके मुख में से एक आकाश चीरती आवाज बाहर आयी कि, "तब विश्व भर का कोई भी तत्त्व किसी भी समय बाल बांका नहीं कर सकता, जब 103
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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