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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? डाकू भी आखिर मानव थे। थैले में से कंबल निकालकर हमें ओढने के लिए दिये। उनकी दृष्टि से अब कठिन से कठिन प्रवास शुरु हो रहा था। चोर की तरह आगे बढ़ने की कठोर सूचना के बाद पैर आगे चल पड़े। हाथ में या साथ में प्रकाश का कोई साधन नहीं था। अंधेर में प्रयाण शुरु हुआ। खड्डे आते, पत्थर आते, पर्वत आते किन्तु चलने से ही छुटकारा था। हमारी स्वतंत्रता को बंदूक की नोंक के आगे शरणागत होना ही पड़ा था। हमारी टुकड़ी के आगे एक डाकू चलता था। रास्ते के पहचान की जिम्मेदारी उसके सिर पर थी। आधे-पोन घंटे की कमर-तोड़ भाग-दौड़ के बाद हमें दूर-दूर दीये दिखे। अंधेरे में दिखाई देते यह दीप हमें आशाप्रद लगे, किन्तु वह आशा भी मर गयी। टिमटिमाते दीपों की दिशा को छोड़कर डाकू दूसरी ही दिशा में चलने लगे। | इस प्रवास में खेतों में खड़ी फसल को पैरों से चीरनी पड़ी। हम भी डाकुओं की चिंता को जान गये। लगभग नौ बजे हमारा प्रयाण रुका। डाकू किसी की प्रतीक्षा में थे। हमें लगा-'रात यहीं बितानी पड़ेगी' किन्तु उतने में एक डाकू आ गया। हमें आश्चर्य हुआ। वह थोड़ा सा सामान लेकर आया था। उसमें पानी भी था, नमक-मिर्च भी थी। वह रास्ते के खाने की सामग्री थी। डाकू खाना खाकर डरते हदय से सोने लगे। हमें भी आराम करने के लिए सूचना दी। परन्तु बेचैनी के बीच चैन कहां? हमारी आंख के सामने तो सुबह की लूट का करुण दृश्य घूम रहा था। अभागिन ये माताएं अपहत पुत्रों के | पीछे कैसा करुण रुदन कर रही होंगी? स्वजनों की सिसकियां कैसी ददिली होंगी? ऐसे अनेक विचार हमारे हदय में घूम रहे थे। काले आकाश के बीच में भी हमें दूर-दूर ध्रुव तारे के स्थान पर हमारी अडिग श्रद्धा दिखाई देती थी। हमारे अन्तःकरण में शंखेश्वर का अजपा-जप अजीब अभयता भर रहा था। नीरव-रात गहरी होती गयी। हमारी नींद कहीं खो गयी थी। दूर-दूर 77
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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