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________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वापिस प्रारंभ कर दिया। लगभग ढाई बजे वापिस पड़ाव डाला गया। डाकुओं ने एक गठरी में से बासी रोटियां निकाली। किन्तु उनकी हालत देखकर ही हमारी भूख भाग गयी। ___हमने कहा "भूख नहीं है।" डाकुओं का सरदार अब चीख पड़ा "खाये बिना प्रयाण कैसे हो सकेगा? चलो, हम साथ में बैठकर खा लेते हैं।" हम मन मारकर टुकड़ा-टुकड़ा खाने लगे। पानी की कमी थी। दो-दो बूंट पानी हमारे हिस्से में आया। डाकू अब निर्भय थे। आराम शुरु हुआ। सभी अपनी-अपनी कहानी सुना रहे थे। किन्तु हमारे पर तो अभी भी चौकीदारी जारी थी। एक बंदूक तो बराबर हमारे सामने खिंची हुई रहती थी। हम बोले "अब हम कहाँ भागकर जाने वाले हैं? बंदूक की नोंक को जरा दूसरी ओर रखो, तो हमारे जीव को कुछ शान्ति मिले।" डाकुओं के साथ थोड़ी टेढी-मेढी बातें हुई, मुख्य बात को पूछने की हिम्मत बहुत देर से आई। अंत में हमारे में से एक ने पूछा- "इन चंबल की घाटियों से हमारा छुटकारा कब होगा?" डाकू हंस पडे। इस हास्य की आवाज भी खतरनाक थी। जवाब मिला-"फिरौती के लिए तुम्हारा अपहरण हुआ है। तुम्हारे मां-बाप से मुंह मांगी रकम लेने के बाद ही हम तुम्हें आजाद करेंगे।" . बेचैनी भरा दिन पूरा हुआ। प्रकृति की मुक्त हवा में, विश्रान्ति के स्वप्न हमारी आंख में खेलने लगे, किन्तु उतने में तो प्रयाण पुनः प्रारम्भ हुआ। डाकुओं की दूरदर्शिता को देखकर हम दंग रह गये। वे पड़ाव में गिरे हुए बीड़ी के टुकड़ों एवं माचिस की तिलियों को दूर-दूर घाटियों में फेंकते थे। . सर्दी की रात की ठंडी हवाएँ पुनः शुरु हुई। चंबल की घाटी में सर्दी की रात, मानो बर्फ की वर्षा से प्रारम्भ होती है, ऐसी धड़कन से हमारा शरीर कांपने लगा। 76
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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