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________________ ४७ उद्देशक ३: सूत्र १०-१२ निसीहज्झयणं दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय-अणुवत्तिय परिवेढियपरिवेढिय परिजविय-परिजविय ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति॥ अनुवर्त्य-अनुवर्त्य परिवेष्ट्य-परिवेष्ट्य परिजल्प्य-परिजल्प्य अवभाषते, अवभाषमाणं वा स्वदते। उस (दाता) के पीछे-पीछे जाता है। फिर उसके आगे, पीछे अथवा पार्श्व में ठहर कर कहता है-तुम्हारा श्रम असफल न हो-इस प्रकार कह कह कर अवभाषण करता है अथवा अवभाषण करने वाले का अनुमोदन करता है। १०. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसुवा गाहावतिकुलेसुवा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिएहिं वा गारथिएहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय-अणुवत्तिय परिवेढिय- परिवेढिय परिजविय-परिजविय । ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः आगंत्रागारेषु वा आरामागारेषु १०. जो भिक्षु यात्रीगृहों, आरामगृहों, गृहपतिवा 'गाहा'पतिकुलेषु वा पर्यावसथेषु वा कुलों अथवा आश्रमों में अन्यतीर्थिकों अथवा अन्ययूथिकैः वा अगारस्थितैः वा अशनं गृहस्थों के द्वारा सामने लाकर दिए जाने वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा अभिहतम् वाले अशन, पान, खाद्य अथवा स्वाद्य का आहृत्य दीयमानं प्रतिषेध्य तानेव प्रतिषेध कर देता है। उसके बाद कुछ दूर अनुवर्त्य-अनुवर्त्य परिवेष्ट्य-परिवेष्ट्य उन (दाताओं) के पीछे-पीछे जाता है। फिर परिजल्प्य-परिजल्प्य अवभाषते, उनके आगे, पीछे अथवा पार्श्व में ठहरकर अवभाषमाणं वा स्वदते। कहता है-तुम्हारा श्रम असफल न हो-इस प्रकार कह कह कर अवभाषण करता है अथवा अवभाषण करने वाले का अनुमोदन करता है। ११. जे भिक्खू आगंतारेसु वा यो भिक्षुः आगंत्रागारेषु वा आरामागारेषु ११. जो भिक्षु यात्रीगृहों, आरामगृहों, गृहपति आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसुवा वा 'गाहा'पतिकुलेषु वा पर्यावसथेषु वा . कुलों अथवा आश्रमों में अन्यतीर्थिकस्त्री परियावसहेसु वा अण्णउत्थिणीए वा अन्ययूथिक्या वा अगारस्थ्या वा अशनं । अथवा गृहस्थस्त्री के द्वारा सामने लाकर गारत्थिणीए वा असणं वा पाणं वा वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा अभिहृतम् दिए जाने वाले अशन, पान, खाद्य अथवा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट आहृत्य दीयमानं प्रतिषेध्य तामेव स्वाद्य का प्रतिषेध कर देता है। उसके बाद दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अनुवर्त्य-अनुवर्त्य परिवेष्ट्य-परिवेष्ट्य कुछ दूर उस (दाता स्त्री) के पीछे-पीछे अणुवत्तिय-अणुवत्तिय परिवेढिय- परिकल्प्य-परिजल्प्य अवभाषते , जाता है। फिर उसके आगे, पीछे अथवा परिवेढिय परिजविय-परिजविय अवभाषमाणं वा स्वदते। पार्श्व में ठहर कर कहता है-तुम्हारा श्रम ओभासति, ओभासंतं वा असफल न हो-इस प्रकार कह कह कर सातिज्जति॥ अवभाषण करता है अथवा अवभाषण करने वाले का अनुमोदन करता है। १२. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसुवा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिणीहिं वा गारस्थिणीहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय-अणुवत्तिय परिवेढिय- परिवेढिय परिजविय-परिजविय यो भिक्षुः आगंत्रागारेषु वा आरामागारेषु १२. जो भिक्षु यात्रीगृहों, आरामगृहों, गृहपतिवा 'गाहा'पतिकुलेषु वा' पर्यावसथेषु वा कुलों अथवा आश्रमों में अन्यतीर्थिकस्त्रियों अन्ययूथिकीभिः वा अगारस्थीभिः वा अथवा गृहस्थस्त्रियों के द्वारा सामने लाकर अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा । दिए जाने वाले अशन, पान, खाद्य अथवा अभिहृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिषेध्य ताः स्वाद्य का प्रतिषेध कर देता है। उसके बाद एव अनुवर्त्य अनुवर्त्य परिवेष्ट्य-परिवेष्ट्य कुछ दूर उन (दाता स्त्रियों) के पीछे-पीछे परिजल्प्य-परिजल्प्य अवभाषते, जाता है। फिर उनके आगे, पीछे अथवा अवभाषमाणं वा स्वदते । पार्श्व में ठहर कर कहता है-तुम्हारा श्रम
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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