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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक २ : सूत्र ४५-५१ सागारिय-पदं शय्यातर-पद २९ सागारिक-पदम् यो भिक्षुः सागारिकपिण्डं गृह्णाति, गृह्णन्तं वा स्वदते। ४५.जे भिक्खू सागारिय-पिंडं गिण्हति, गिण्हतं वा सातिज्जति॥ ४५. जो भिक्षु सागारिक-शय्यातर के पिण्ड को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ४६. जे भिक्खू सागारिय-पिंडं भुंजति, यो भिक्षुः सागारिकपिण्डं भुङ्क्ते, भुञ्जानं भुजंतं वा सातिज्जति॥ वा स्वदते। ४६. जो भिक्षु शय्यातरपिण्ड का उपभोग करता है अथवा उपभोग करने वाले.का अनुमोदन करता है। ४७. जे भिक्खू सागारिय-कुलं अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पुव्वामेव पिंडवाय-पडियाए अणुप्पविसति, अणुप्पविसंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः सागारिककुलं अज्ञात्वा अपृष्ट्वा ४७. जो भिक्षु शय्यातरकुल को जाने बिना, अगवेषयित्वा पूर्वमेव पिण्डपातप्रतिज्ञया पूछे बिना, गवेषणा किए बिना पहले ही अनुप्रविशति, अनुप्रविशन्तं वा स्वदते। पिण्डपात को प्रतिज्ञा से अनुप्रवेश करता है अथवा अनुप्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। ४८.जे भिक्खू सागारिय-नीसाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासिय-ओभासिय जायति, जायंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः सागारिकनिश्रया अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा अवभाष्य अवभाष्य याचते, याचमानं वा स्वदते । ४८. जो भिक्षु शय्यातर की निश्रा से (जिस घर में शय्यातर गया हुआ हो, वहां उसके प्रभाव का उपयोग कर) अशन, पान, खाद्य अथवा स्वाद्य की मांग-मांग कर याचना करता है अथवा याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। २६ शय्यासंस्तारक-पद सेज्जासंथारय-पदं शय्यासंस्तारक-पदम् ४९. जे भिक्खू उडुबद्धियं सेज्जा- यो भिक्षुः ऋतुबद्धिकं शय्यासंस्तारकं परं संथारयं परं पज्जोसवणाओ पर्युषणायाः उपातिक्रामति, उपातिक्रामन्तं उवातिणाति, उवातिणंतं वा वा स्वदते । सातिज्जति॥ ४९. जो भिक्षु ऋतुबद्ध काल (चातुर्मास के अतिरिक्त शेष आठ मास का काल) में याचित शय्या और संस्तारक को पर्युषणा (वर्षावास का प्रथम दिन–श्रावण कृष्णा एकम) के बाद रखता है अथवा रखने वाले का अनुमोदन करता है। ५०. जे भिक्खू वासावासियं सेज्जा- यो भिक्षुः वर्षावार्षिकं शय्यासंस्तारकं परं संथारयं परं दसरायकप्पाओ दशरात्रकल्पात् उपातिक्रामति, उवातिणाति, उवातिणंतं वा उपातिक्रामन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥ ५०. जो भिक्षु वर्षावास में याचित शय्या और संस्तारक को दसरात्र कल्प से अधिक (चातुर्मास-सम्पन्नता की दस रात्रि के बाद) रखता है अथवा रखने वाले का अनुमोदन करता है। ५१. जे भिक्खू उडुबद्धियं वा वासावासियं वा सेज्जा-संथारगं यो भिक्षुः ऋतुबद्धिकं वा वर्षावार्षिकं वा शय्यासंस्तारकम् उपरि सिच्यमानं प्रेक्ष्य ५१. जो भिक्षु ऋतुबद्ध अथवा वर्षावास काल के लिए गृहीत शय्या-संस्तारक को वर्षा में
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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