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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक १९ : सूत्र २४-३३ २४. जे भिक्खू दोण्हं सरिसयाणं एक्कं यो भिक्षुः द्वयोः सदृशयोः एकं संचिक्खावेति, एक्कं वाएति, वाएंतं 'संचिक्खावेति' (संशिक्षयति), एकं वा सातिज्जति॥ वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते। २४. जो भिक्षु दो समान योग्यता वाले शिष्यों में से एक को शिक्षा देता है, एक को में से । वाचना देता है अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। २५. जे भिक्खू आयरिय-उवज्झाएहिं अविदिण्णं गिरं आतियति, आतियंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः आचार्योपाध्यायैः अविदत्ता २५. जो भिक्षु आचार्य और उपाध्याय के द्वारा गिरम् आददाति, आददतं वा स्वदते। अप्रदत्त वाणी को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। २६. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारस्थियं वा वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अन्ययूथिकं वा अगारस्थितं २६. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को वा वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते । वाचना देता है अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। २७. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा यो भिक्षुः अन्ययूथिकाद् वा गारत्थियं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं अगारस्थिताद्वा प्रतीच्छति, प्रतीच्छन्तं वा सातिज्जति॥ वा स्वदते। २७. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से वाचना ग्रहण करता है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। २८.जे भिक्खू पासत्थं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः पार्श्वस्थं वाचयति, वाचयन्तं २८. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वाचना देता है वा स्वदते। अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। २९. जे भिक्खू पासत्थं पडिच्छति, यो भिक्षुः पार्श्वस्थाद् प्रतीच्छति, २९. जो भिक्षु पार्श्वस्थ से वाचना ग्रहण करता पडिच्छंतं वा सातिज्जति॥ प्रतीच्छन्तं वा स्वदते। है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३०.जे भिक्खू ओसण्णं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अवसन्नं वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते। ३०. जो भिक्षु अवसन्न को वाचना देता है अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। ३१. जे भिक्खू ओसण्णं पडिच्छति, यो भिक्षुः अवसन्नाद् प्रतीच्छति, ३१. जो भिक्षु अवसन्न से वाचना ग्रहण करता पडिच्छंतं वा सातिज्जति॥ प्रतीच्छन्तं वा स्वदते। है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३२. जे भिक्खू कुसीलं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः कुशीलं वाचयति, वाचयन्तं वा स्वदते। ३२. जो भिक्षु कुशील को वाचना देता है . अथवा वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। ३३. जे भिक्खू कुसीलं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति।। यो भिक्षुः कुशीलाद् प्रतीच्छति, ३३. जो भिक्षु कुशील से वाचना ग्रहण करता प्रतीच्छन्तं वा स्वदत। है अथवा वाचना ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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