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________________ उद्देशक १९: सूत्र ७-१४ ४२८ निसीहज्झयणं ७. जे भिक्खू वियडं गालेति, गालावेति, गालियमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः 'वियडं' गालयति, गालयति, गालितमाहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते। ७. जो भिक्षु 'विकट' को छानता है, छनवाता है, छानकर के लाकर दी जाने वाली 'विकट' को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। सज्झाय-पदं स्वाध्याय-पदम् स्वाध्याय-पद ८. जे भिक्खू चउहिं संझाहिं सज्झायं यो भिक्षुः चतसृषु सन्ध्यासु स्वाध्यायं ८. जो भिक्षु चार संध्याओं में स्वाध्याय करता करेति, करेंतं वा सातिज्जति, तं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते, है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता जहा-पुव्वाए संझाए, पच्छिमाए तद्यथा-पूर्वस्यां सन्ध्यायां, पश्चिमायां है, जैसे-पूर्व संध्या में, पश्चिम संध्या में, संझाए, अवरण्हे, अड्डरत्ते॥ संध्यायां, अपराह्ने, अर्धरात्रे। अपराह्न में और अर्धरात्रि में। ९. जे भिक्खू कालियसुयस्स परं तिण्हं यो भिक्षुः कालिकश्रुतस्य परं तिसृणां ९. जो भिक्षु कालिकश्रुत की तीन पृच्छा से पुच्छाणं पुच्छति, पुच्छंतं वा पृच्छानां पृच्छति, पृच्छन्तं वा स्वदते। अधिक पृच्छा करता है अथवा पृच्छा करने सातिज्जति॥ वाले का अनुमोदन करता है। १०.जे भिक्खू दिट्टिवायस्स परं सत्तण्हं यो भिक्षुः दृष्टिवादस्य परं सप्तानां १०. जो भिक्षु दृष्टिवाद की सात पृच्छा से पुच्छाणं पुच्छति, पुच्छंतं वा पृच्छानां पृच्छति, पृच्छन्तं वा स्वदते। अधिक पृच्छा करता है अथवा पृच्छा करने सातिज्जति॥ वाले का अनुमोदन करता है। ११. जे भिक्खू चउसु महामहेसु यो भिक्षुः चतुर्षु महामहेषु स्वाध्यायं ११. जो भिक्षु चार महामहोत्सवों में स्वाध्याय सज्झायं करेति, करेंतं वा करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते, तद्यथा- करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन सातिज्जति, तं जहा-इंदमहे खंदमहे इन्द्रमहे, स्कन्दमहे, यक्षमहे, भूतमहे। करता है, जैसे-इन्द्रमहोत्सव, स्कन्दजक्खमहे भूतमहे॥ महोत्सव, यक्षमहोत्सव, भूतमहोत्सव। १२. जे भिक्खू चउसु महापाडिवएसु यो भिक्षुः चतसृषु महाप्रतिपत्सु सज्झायं करेति, करेंतं वा स्वाध्यायं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते, सातिज्जति, तं जहा-सुगिम्हय- तद्यथा-सुग्रीष्मकप्रतिपदि, आषाढ़ीपाडिवए आसाढीपाडिवए आसोय- प्रतिपदि, अश्वयुप्रतिपदि कार्तिकपाडिवएकत्तियपाडिवए। प्रतिपदि। १२. जो भिक्षु चार महाप्रतिपदाओं-पक्ष की प्रथम तिथियों में स्वाध्याय करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है, जैसे-सुग्रीष्म प्रतिपदा, आषाढ़ी प्रतिपदा, आश्विन प्रतिपदा, कार्तिक प्रतिपदा।' १३. जे भिक्खू चाउकालपोरिसिं यो भिक्षुः चतुष्कालपौरुषीषु स्वाध्यायम् १३. जो भिक्षु चार कालपौरुषी (कालिक सज्झायं उवातिणावेति, उवातिणावेंतं उपातिक्रामति, उपातिक्रामन्तं वा प्रहर) में स्वाध्याय का अतिक्रमण करता है वा सातिज्जति॥ स्वदते। अथवा अतिक्रमण करने वाले का अनुमोदन करता है। १४. जे भिक्खू असज्झाइए सज्झायं यो भिक्षुः अस्वाध्यायिके स्वाध्यायं १४. जो भिक्षु अस्वाध्यायी में स्वाध्याय करता करेति, करेंतं वा सातिज्जति॥ करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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