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________________ निसीहज्झयणं में भी उद्भिन्न भिक्षा का निषेध किया गया है। ७. सूत्र १२८-१३१ प्रासुक एवं एषणीय खाद्य पदार्थ अथवा उपधि यदि सचित्त अथवा मिश्र पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय अथवा वनस्पतिकाय पर रखी हुई हो तो साधु के लिए अग्राह्य है । स्थावर जीव अत्यन्त सूक्ष्म एवं अल्पसंहनन वाले होते हैं। उन्हें संघट्टन मात्र से भयंकर वेदना की अनुभूति होती है। अतः उन पर अनन्तर अथवा परम्पर निक्षिप्त वस्तु को ग्रहण करने से निक्षिप्त दोष लगता है।' आयारचूला में भी पृथिवीकाय, अप्काय आदि पर निक्षिप्त वस्तु को ग्रहण करने का निषेध किया गया है। प्रस्तुत आलापक में निक्षिप्त भिक्षा को ग्रहण करने का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। ८. सूत्र १३२ अत्यधिक उष्ण अशन, पान आदि को ग्रहण करने से दाता एवं ग्राहक के हाथ आदि जलने की संभावना रहती है ग्रहण करते समय अशन आदि नीचे गिर जाएं तो भूमि पर चलने वाले प्राणियों की हिंसा, पात्र के लेप का विनाश, भाजन-भेद आदि दोष संभव हैं।' अत्युष्ण आहार आदि को मुंह से फूंक देकर अथवा सूर्प, पंखे, वस्त्र आदि से वीजन कर दिया जाए तो साधु के निमित्त वायुकाय की विराधना होती है। अतः आयारचूला में फूंक देकर अथवा वीजन कर दिए जाने वाले अत्यधिक उष्ण अशन, पान आदि को ग्रहण करने का निषेध किया गया है।" प्रस्तुत सूत्र में उस निषेध का अतिक्रमण कर अशन, पान आदि के ग्रहण को प्रायश्चित्तार्ह माना गया है । शब्द विमर्श १. सुप्य शूर्प २. विहुव-पंखे ३. तालियंट - ताड़पत्र का वीजन ४. पत्त पद्मिनीपत्र आदि ५. साहा - वृक्ष की डाल ६. साहाभंग - शाखा का टुकड़ा ७. पण मोरपंख ८. पिडुणहत्थ - मोरपिच्छी (मोरपंखों का एक साथ बंधा हुआ गुच्छा)। १. निभा. ५९५९-५९६१ २. आचू. १/९२-९७ ३. निभा. गा. ५९६६ ४. वही, भा. ४ चू. पृ. १९४ ४०१ ५. आचू. १/९६ ६. वही, १ / ९८, १/१०४, १/१५१ ७. पाइय. ८. निभा. भा.. ४, चू. पृ. १९५ - उसिणं सीतोदगे छुब्भति तं उस्सेइमं पाणियं । ९. बेलकण्ण वस्त्र का एक देश तुलना हेतु द्रष्टव्य दसवे ४/२१ (टिप्पण एवं शब्द विमर्श) ९. सूत्र १३३ कुएं, तालाब अथवा वर्षा आदि का जल जब तक शस्त्रपरिणत न हो जाए, तब तक मुनि के लिए अग्राह्य होता है । आधारचूला में कुल इक्कीस प्रकार के पानक का उल्लेख हुआ है, जो प्रासुक, एषणीय हों तो ग्रहण किए जा सकते हैं। यदि ये अधुनाधौत, अनाम्ल, अव्युत्क्रान्त, अपरिणत, अविध्वस्त हों तो अप्रासु अनेषणीय होते हैं अतः भिक्षु के लिए अग्राह्य हैं। प्रस्तुत सूत्र में ग्यारह प्रकार के ऐसे धोवन-पानी का उल्लेख है जो चिरकाल के बाद वर्ण, गंध, रस आदि से परिणत हो जाने पर ग्राह्य होते हैं। उद्देशक १७ : टिप्पण १. उस्सेइम आटे से मिश्रित जल, आटा धोया हुआ जल।" उष्ण वस्तु डाला हुआ शीतल (अप्रासुक) जल।' २. संसेइम - आटे का धोवन । (विस्तार हेतु द्रष्टव्य दसवे. ५/१/७५ का टिप्पण) उष्ण वस्तु तिल आदि को धोया हुआ अथवा उन पर डाला हुआ शीतोदक।" ३. चाउलोदग - चावल धोया हुआ पानी।" ४. वारोदग - वार का अर्थ है घड़ा। गुड़ आदि के घड़े को धोया हुआ पानी (विस्तार हेतु द्रष्टव्य दसवे. ५/१/७५ का टिप्पण) । चूर्णिकार ने इसके स्थान पर 'वालधोवन' शब्द की व्याख्या की है । " ५. तिलोदग - तिल धोया हुआ पानी । ६. तुसोदग दाल आदि धोया हुआ, तुषयुक्त जल ब्रीहि आदि को धोया हुआ जल । " ७. जबोदग पत्र (जौ) धोया हुआ जल ८. आयाम - अवस्रावण । १३ ९. सोवीर-आरनाल। " १०. अंबकंजिय आम्ल कंजिका । ११. सुद्धवियड - प्रासुक जल । १५ प्रस्तुत सूत्र में गृहीत आटे, तिल, चावल, जौ आदि के धोवन के आधार पर यह भी ज्ञातव्य है कि इसी प्रकार के अन्य खाद्य पदार्थ से लिप्त हाथ या पात्र को धोने पर यदि पानी के ९. वही-जं पुण उसिणं चेव उवरि सीतोदगेण चैव सिंखियं..... तिला उहपाणिएण सिण्णा जति सीतोदगा धोवंति तो संसेतिमं भण्णति । १०. आचू, बृ.प. ३४५-दुल धावनोदकं । ११. निभा. ४ चू. पृ. १९६, १९७ १२. पाइय. १३. वही, १४. आचू. टी. प. ३४६ १५. वही
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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