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________________ ३३४ निसीहज्झयणं उद्देशक १५: सूत्र १२४-१२९ णिवेसिय-णिवेसियणीहरति, स्वदते। णीहरेंतं वा सातिज्जति। अथवा निकालने वाले का अनुमोदन करता णह-सिहा-पदं नखशिखा-पदम् नखशिखा-पद १२४. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२४. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो दीहाओ णह-सिहाओ दीर्घाः नखशिखाः कल्पेत वा दीर्घ नखशिखा को काटता है अथवा कप्ऐज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा व्यवस्थित करता है और काटने अथवा संठवेंतं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता दीह-रोम-पदं दीर्घरोम-पदम् दीर्घरोम-पद १२५. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२५. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो दीहाइं जंघ-रोमाई कप्पेज्ज दीर्घाणि जंघारोमाणि कल्पेत वा जंघाप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को काटता है वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं ___ संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा अथवा व्यवस्थित करता है और काटने वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। १२६. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२६. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो दीहाई वत्थि-रोमाई दीर्घाणि वस्तिरोमाणि कल्पेत वा वस्तिप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को काटता है कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा अथवा व्यवस्थित करता है और काटने संठवेंतं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। १२७. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२७. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो दीह-रोमाई कप्पेज्ज वा दीर्घरोमाणि कल्पेत वा संस्थापयेद् वा, दीर्घ रोमराजि को काटता है अथवा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा कल्पमानं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते। व्यवस्थित करता है और काटने अथवा सातिज्जति॥ व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता १२८.जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२८. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो दीहाइं कक्खाण-रोमाइं दीर्घाणि कक्षारोमाणि कल्पेत वा कक्षा की दीर्घ रोमराजि को काटता है कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा अथवा व्यवस्थित करता है और काटने संठवेंतं वा सातिज्जति॥ संस्थापयन्तं वा स्वदते। अथवा व्यवस्थित करने वाले का अनुमोदन करता है। १२९. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः १२९. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपनी अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाई कप्पेज्ज दीर्घाणि श्मश्ररोमाणि कल्पेत वा श्मश्रु की दीर्घ रोमराजि को काटता है वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं संस्थापयेद् वा, कल्पमानं वा अथवा व्यवस्थित करता है और काटने
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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