SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (32) गुजराती और राजस्थानी का मिश्रित रूप है। इसके कर्ता संभवतः धर्मसी मुनि हैं।' टब्बाकार ने सर्वप्रथम द्वादशांग रूप श्रुतदेव, अर्हत् प्रवचन, गणधर आदि को नमस्कार करते हए निशीथ को निशीथ कहने के हेतुओं पर विचार करते हुए लिखा है-'पाप ने नसीते ते भणी.....उन्मार्ग चालतां ने एणे करी ने दंड रूप नसीत कहिजे ते भणी.....सर्व साध साधवी नो आचार नो निरणो करै.....' आदि। टब्बा में अनेक सूत्रांशों की उदाहरण आदि के साथ संक्षिप्त एवं सरल व्याख्या की गई है। इस दृष्टि से उन्होंने निशीथ चूर्णिकार द्वारा की गई सूत्रानुसारी चूर्णि का क्वचित् अनुकरण किया है। वि.सं. २००१ में हिसार में हमारे धर्मसंघ के मुनिश्री सम्पतमलजी, डूंगरगढ़ द्वारा लिखित प्रति में टब्बा की कुल पत्र संख्या ५१ है। अन्त में दो संग्रहणी गाथाओं में निशीथ के लेखक के रूप में गुणानुवाद पूर्वक विशाखगणि को याद करते हुए टब्बे को सम्पन्न किया गया है। टब्बे के अन्त में यन्त्र के माध्यम से प्रत्येक उद्देशक के आदिसूत्र के आधार पर नाम यथा 'हत्थकम्म' 'दारुण्डनामा', 'आगंतारनामा' आदि के साथ उनकी सूत्र-संख्या का उल्लेख किया गया है तथा प्रत्याख्यान प्रायश्चित्त, तपः प्रायश्चित्त एवं छेद प्रायश्चित्त के आधार पर भिन्नमास आदि का परिमाण बतलाया गया है। निशीथ की जोड़-यह तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य द्वारा कृत भावानुवाद है। इसकी भाषा राजस्थानी है। यह गीतिकामय है। इसकी कुल पद्य संख्या ४०३ है। इसका रचनाकाल है वि.सं. १८८८। निशीथ की हण्डी-यह निसीहज्झयणं का संक्षिप्त सारांश है। इसके रचनाकार भी श्रीमज्जयाचार्य हैं। यह राजस्थानी भाषा की गद्यमय रचना है। आचार्य महाश्रमण १. टब्बे की प्रतियों में विशाखगणि एवं लिपिकर्ता मुनियों/सतियों का नाम मिलता है किन्तु मूल टब्बाकार ने अपना नाम, समय, स्थान आदि किसी का कथन नहीं किया। जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग-३) के लेखक डॉ. मोहनलाल मेहता (तत्कालीन अध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान) ने वाडीलाल मो. शाह कृत 'ऐतिहासिक नोंथ' के आधार पर लोकागच्छीय (स्थानकवासी) मुनि धर्मसिंह को भगवती, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, चन्द्रप्रज्ञप्ति एवं सूर्यप्रज्ञप्ति के अतिरिक्त शेष २७ (सत्ताईस) आगमों का टब्बाकार बताया है। इन्होंने सरल सुबोध गुजराती मिश्रित राजस्थानी भाषा में इन बालावबोधों की रचना नवीन सम्प्रदाय-दरियापुरी सम्प्रदाय के उद्भव से पूर्व विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में की। अतः हमने मुनि धर्मसिंह की टब्बाकार के रूप में संभावना की है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy