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________________ (31) निशीथ विशेष चूर्णि निसीहज्झयणं का तीसरा व्याख्या ग्रन्थ विशेष चूर्णि है। यह जैन साहित्य का ही नहीं, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य का महान् ग्रन्थ है। यह जैन आचार का शेखर ग्रंथ है। चूर्णिकार ने मुख्य प्रतिपाद्य के साथ पारिपार्श्विक विषयों का जिस कौशल के साथ संकलन-संग्रहण किया है, अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें जैन आचारशास्त्र की जटिलतम गुत्थियों के रहस्योद्घाटन के साथ-साथ साधक के मानसिक आरोहअवरोध का सूक्ष्मतम विश्लेषण उपलब्ध होता है। चूर्णि की रचना मध्यकाल में हुई। उस समय साध्वाचार अपक्रान्ति के मोड़ पर स्थित था। देश एवं काल की बदलती परिस्थिति तथा हीयमान धृति-संहनन के कारण बदलती मनःस्थिति के फलस्वरूप स्थान-स्थान पर इसमें अपवादों को भी प्रचुरमात्रा में प्रश्रय प्राप्त हुआ है फिर भी इसमें दृढ़ मनोबली संयमी की निर्दोष जीवनचर्या को ही अग्रिम स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। सूत्र एवं भाष्य के एक-एक शब्द पर सुविस्तृत ऊहापोह, विविध प्रकार की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक स्थितियों के सहज, सरल शैली में प्रतिपादन, भारतीय सभ्यता एवं राजनैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक तथ्यों के ज्ञानोपयोगी विवेचन की दृष्टि से विशेष चूर्णि को विश्वकोष कहा जा सकता है। श्रमणाचार के सूक्ष्म विश्लेषण एवं जीवन के उतार-चढ़ाव के चित्रण की दृष्टि से इस पर 'यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्' सूक्त सार्थक प्रतीत होता है। राजा के अन्तःपुर विविध राजकर्मचारी, राजाओं द्वारा किए जाने वाले महोत्सव, विरुद्धराज्य, वैराज्य आदि के कारण होने वाले उपद्रव एवं कष्ट आदि अनेक तथ्यों से भारतीय राजनैतिक स्थिति का चित्रण मिलता है। इसी प्रकार प्राचीन भारतीय समाज, भिन्न भिन्न जनपदों में विद्यमान विविध प्रकार की आचार-परम्पराएं, जातिवाद, कर्म एवं शिल्प विषयक भिन्न-भिन्न अवधारणाएं, विविध प्रकार के गृह एवं शालाएं, व्यापारवाणिज्य, कृषि एवं वनस्पति सम्बन्धी विविध ज्ञातव्य तथ्यों के द्वारा चूर्णि समाज, राजनीति एवं संस्कृति के विषय में शोध करने वालों के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करती है। निशीथ विशेष चूर्णि में दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, ओवाइयं, भगवई के अतिरिक्त विविध नियुक्तियों, भाष्यों एवं टीकाओं के उद्धरण प्राप्त होते हैं। साथ ही उसमें नरवाहन दन्तकथा, धूर्ताख्यान, मलयवती, विवाहपटल, वसुदेव चरित, सिद्धि-विनिश्चय आदि शताधिक ग्रन्थों के नाम और उद्धरण भी प्राप्त होते हैं जो चूर्णिकार के बाहुश्रुत्य को प्रमाणित करने में पर्याप्त हैं। निसीहज्झयणं के नियुक्ति एवं भाष्य में रचनाकार के नाम, काल, स्थान आदि की निर्णायक सूचना उपलब्ध नहीं होती, पर चूर्णिकार ने अपने माता, पिता और भाइयों के नामों सहित स्वयं अपना नाम और पद का भी कथन गूढ़-पदों में कर दिया है। बीसवें उद्देशक के अन्त में प्राप्त होने वाली गाथाओं के आधार पर सुबोधा व्याख्याकार श्रीचन्द्रसूरि ने विशेष चूर्णिकार का नाम 'जिनदासगणिमहत्तर' फलित किया है। निशीथ विशेष चूर्णि एक विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें भाष्य की प्रायः सभी गाथाओं का विवरण विस्तार से उपलब्ध होता है। इसमें चूर्णिकार ने अपने युग का प्रतिबिम्ब शब्दबद्ध कर दिया है। इसका ग्रन्थमान लगभग २८००० पदपरिमाण है। सुबोधा व्याख्या यह निसीहज्झयणं के बीसवें उद्देशक की चूर्णि में आए हुए दुर्गम पदों की व्याख्या है। इसके कर्ता श्रीचन्द्रसूरि हैं। यह गद्यमय है। इसकी भाषा संस्कृत है। इसके आदि में दो पद्यों के द्वारा सम्बन्ध एवं अभिधेय का कथन किया गया है। आचार्य कहते हैं-श्री निशीथ की चूर्णि में बीसवें उद्देशक में जो कई दुर्ग पद अथवा वाक्य है, उनकी कुछ सुबोध व्याख्या करूंगा। यह निशीथसूत्रम् (निशीथभाष्य एवं चूर्णि) के चतुर्थ भाग में तीस पृष्ठों में प्रकाशित है। इसके अन्त में रचनाकार ने दो पद्यों में अपने नाम एवं रचनाकाल का उल्लेख किया स्तबक-यह प्रस्तुत आगम की बालावबोध जैसी संक्षित गद्यमय व्याख्या है। इसे राजस्थानी में टब्बा कहते हैं। इसकी भाषा १. निभा. गा. ४६० सचूर्णि २. वही, भा. ४ पृ. ४४३
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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