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________________ (24) प्रस्तुत आगम के उद्देशकों का विभाजन मासिक उद्घातिक, मासिक अनुद्घातिक, चातुर्मासिक अनुद्घातिक एवं आरोपणा-इन पांच विकल्पों के आधार पर किया गया है। ठाणं में इन्हीं विकल्पों को आचारप्रकल्प कहा गया है।' वस्तुतः प्रायश्चित्त के दो ही प्रकार हैं-मासिक और चातुर्मासिक। द्वैमासिक, त्रैमासिक, पाज्वमासिक और षाण्मासिक ये प्रायश्चित आरोपणा से बनते हैं। बीसवें उद्देशक का मुख्य विषय आरोपणा हे ठाणं में आरोपणा के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं-१. प्रस्थापिता २. स्थापिता ३. कृत्स्ना ४. अकृत्स्ना और ५. हाडहडा । समवाओ में आरोपणा का विस्तार से वर्णन किया गया है। वहां आचारप्रकल्प (निशीथ) के अट्ठाईस प्रकार बतलाए गये हैं१. एक मास की १५. तीन मास दस दिन की १६. तीन मास पन्द्रह दिन की २. एक मास पांच दिन की ३. एक मास दस दिन की १७. तीन मास बीस दिन की ४. एक मास पन्द्रह दिन की ५. एक मास बीस दिन की ६. एक मास पच्चीस दिन की ७. दो मास की ८. दो मास पांच दिन की ९. दो मास दस दिन की १०. दो मास पन्द्रह दिन की ११. दो मास बीस दिन की १२. दो मास पच्चीस दिन की १३. तीन मास की १४. तीन मास पांच दिन की निसीहझयण की संक्षिप्त विषय वस्तु इस प्रकार है १८. तीन मास पच्चीस दिन की १९. चार मास की २०. चार मास पांच दिन की २१. चार मास दस दिन की २२. चार मास पन्द्रह दिन की २३. चार मास बीस दिन की २४. चार मास पच्चीस दिन की १. ठाणं ५ / १४८ २. वही, ५ / १४९ २५. उद्घातिकी आरोपणा २६. अनुद्घातिकी आरोपणा २७. कृत्स्ना आरोपणा २८. अकृत्स्ना आरोपणा । पहले उद्देशक में हस्तकर्म करने, सचित्त पुष्प आदि को सूंघने, गृहस्थ आदि से संक्रम, अवलम्बन, चिलिमिलि आदि बनवाने, सूई, कैंची आदि के परिष्कार करवाने, सूई, कैंची आदि को प्रातिहारिक रूप में ग्रहण करने के विषय में विविध विधियों के अतिक्रमण, पात्र एवं वस्त्र विषयक अतिक्रमणों, पूतिकर्म-भोग एवं गृहधूम उतरवाने आदि का गुरुमासिक प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। दूसरे उद्देशक में दारुदण्डयुक्त पादप्रोञ्छन के निर्माण, ग्रहण, धारण, परिभोग एवं परिभाजन, अचित्त गंध को सूंघने, स्वयं पदमार्ग, संक्रम आदि का निर्माण, सूई, कैंची आदि के परिष्कार करने, सूक्ष्म असत्य एवं परुष भाषण, अदत्तग्रहण, अखण्ड चर्म एवं वस्त्र के धारण करने, नैत्यिक पिण्ड भोगने, नैत्यिक वास करने, अन्यतीर्थिक आदि के साथ भिक्षाचर्या, विहारभूमि, विचारभूमि एवं ग्रामानुग्राम परिव्रजन, मनोज आहार पानी का उपभोग कर अमनोज्ञ का परिष्ठापन करने, शय्यातरपिंड एवं प्रातिहारिक शय्यासंस्तारक सम्बन्धी विविध विधियों के अतिक्रमण एवं प्रतिलेखन न करने आदि पदों का लघुमासिक प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। तीसरे उद्देशक में धर्मशाला, आरामागार आदि में जाकर अशन आदि का अवभाषण करने, पैर, शरीर आदि के आमार्जन प्रमार्जन आदि तथा केश, रोम, नख आदि के कर्त्तन-संस्थापन, सिर ढंकने, वशीकरणसूत्र के निर्माण तथा गृह गृहगण, विविध फलों के सुखाने के स्थान एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों में परिष्ठापन करने का लघुमासिक प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। चौथे उद्देशक में राजा, राजारक्षित आदि सम्मान्य लोगों को अपना बनाने, उनकी प्रशंसा करने एवं प्रार्थी बनने-बनाने का, कृत्स्न धान्य एवं ३. सम. २८/१
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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