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________________ निसीहज्झयणं संचालण-पदं १३. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- वडियाए अक्खंसि वा ऊरुंसि वा उदरंसि वा थणंसि वा गहाय संचालेति, संचालेंतं वा सातिज्जति॥ १४७ उद्देशक ७ : सूत्र १३-१८ संचालन-पदम् संचालन-पद यो भिक्षुः मातृग्रामं मैथुनप्रतिज्ञया अक्षे १३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वा ऊरौ वा उदरे वा स्तने वा गृहीत्वा अब्रह्मसेवन के संकल्प से अक्ष (कनपटी सञ्चालयति, सञ्चालयन्तं वा स्वदते। अथवा कोई भी इन्द्रिय) ऊरु, उदर अथवा स्तन का ग्रहण कर उसे संचालित करता है अथवा संचालित करने वाले का अनुमोदन करता है। पाय-परिकम्म-पदं पादपरिकर्म-पदम् पादपरिकर्म-पद १४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया १४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स पाए अन्योन्यस्य पादौ आमृज्याद्वा प्रमृज्याद् अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते। भिक्षु के पैरों का आमार्जन करता है अथवा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा सातिज्जति॥ प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है। १५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया १५. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स पाए अन्योन्यस्य पादौ संवाहयेद्वा परिमर्दयेद् अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, वा, संवाहयन्तं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते। भिक्षु के पैरों का संबाधन करता है अथवा संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा परिमर्दन करता है और संबाधन अथवा सातिज्जति॥ परिमर्दन करने वाले का अनुमोदन करता १६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया १६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स पाए तेल्लेण अन्योन्यस्य पादौ तैलेन वा घृतेन वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वसगा वा नवनीतेन वा अभ्यञ्ज्याद् वा भिक्षु के पैरों का तैल, घृत, वसा अथवा वा अन्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, म्रक्षेद वा, अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा मक्खन से अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा स्वदते। करता है और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने सातिज्जति॥ वाले का अनुमोदन करता है। १७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया १७. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स पाए लोद्धेण अन्योन्यस्य पादौ लोभ्रेण वा कल्केन वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण चूर्णेन वा वर्णेन वा उल्लोलयेद् वा उद्वर्तेत के पैरों पर लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वडेज्ज वा, वा, उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा का लेप करता है अथवा उद्वर्तन करता है उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा स्वदते। और लेप अथवा उद्वर्तन करने वाले का सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। १८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षु मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य पादौ शीतोदकविकृतेन वा १८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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