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________________ जैन-दर्शनमें शब्दका पौद्गलिकत्व प्रतिपादन प्रास्ताविक शब्द और अर्थ क्या है ? इनका सम्बन्ध है या नहीं ? ये नित्य हैं या अनित्य ? यदि नित्य है तो इनका क्या स्वरूप है और अनित्य हैं तो क्या ? अर्थतत्त्वका ज्ञान कैसे और क्यों होता है ? अर्थ-तत्त्वका निर्णय किस प्रकारसे और किन साधनोंसे किया जाता है ?-आदि प्रश्नोंका समाधान वैयाकरणोंके अतिरिक्त दार्शनिकोंने भी किया है। शब्द सुदूर प्राचीन कालसे ही दार्शनिकोंके लिए विचारका विषय रहा है । जैन दर्शनकारोंने भी शब्द और अर्थत्तव पर पर्याप्त ऊहा-पोह किया है । प्रमोत्पत्तिका प्रधान साधन शब्द ही है । अतः इसके स्वरूप पर विचार करना दर्शन शास्त्रका एक अनिवार्य अंग है। स्वरूप जैन दर्शनमें शब्दको पुद्गलका पर्याय या रूपान्तर माना गया है। इसकी उत्पत्ति स्कंधोंके परस्पर टकरानेसे होती है। इस लोकमें सर्वत्र पुद्गलरूप शब्द वर्गणाएँ, अति सूक्ष्म और अव्याहत रूपसे भरी हुई हैं। हम अपने मुंहसे ताल्वादिके प्रयत्न द्वारा वायु विशेषका निस्सरण करते है, यही वायु पुद्गल-वर्गणाओंसे टकराती है, जिससे शब्दकी उत्पत्ति हो जाती है। प्रमेय-कमल-मार्तण्डमें शब्दके आकाश गुणत्वका निराकरण करते हुए बतलाया गया है कि परमाणुओंके संयोगरूप स्कन्धों-शब्दवर्गणाओंके सर्वत्र सर्वदा विद्यमान रहनेपर भी ये वर्गणाएँ शब्द रूप तभी परिणमन करती हैं, जब अर्थबोधकी इच्छा से उत्पन्न प्रयत्नसे प्रेरित परस्पर घर्षण होता है। वाद्यध्वनि तथा मेघ आदिको गर्जना भी वर्गणाओंके घर्षण का ही फल है । कुन्दकुन्द स्वामीने शब्द स्वरूपका विवेचन करते हुए लिखा है। सदो खंधप्पभवो खंधो परमाणुसंगसंघादो। पुढेसु तेसु जायदि सद्दो उप्पादिगो णियमा ॥-पंचास्तिकाय, गाथा ७९ शब्द स्कन्धसे उत्पन्न होता है । अनेक परमाणुओंके बन्धको स्कन्ध कहते हैं । इन स्कन्धोंके परस्पर टकरानेसे शब्दकी उत्पत्ति होती है । संस्कृत टीकाकार अमृतचन्द्राचार्यने स्पष्ट करते हुए लिखा है : अतः यह सिद्ध है कि शब्द पुद्गलका पर्याय है-पुद्गल स्वरूप है और इसकी उत्पत्ति स्कन्धोंके परस्पर टकरानेसे होती है । जब शब्द पुद्गलका पर्याय है तो यह किस गुणके विकारसे उत्पन्न होता है; क्योंकि प्रत्येक पर्याय गुणोंकी विकृति-परिवर्तनसे उत्पन्न होता है । पुद्गलमें प्रधान चार गुण होते है-रूप, रस, गन्ध और स्पर्श । शब्द स्पर्श गुण के विकारसे उत्पन्न होता है । भाषा वर्गणाएं जो पुद्गल रूप हैं, उनमें पुद्गलके चारों प्रधान गुणोंके रहनेपर भी स्पर्श गुणके परिवर्तनसे शब्दको उत्पत्ति होती है । यही कारण है कि शब्द कर्ण इन्द्रियसे स्पर्श करनेपर ही अर्थबोधका कारण बनता है । आजके विज्ञानने (Sound) ध्वनिकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें जो प्रक्रिया प्रस्तुत
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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