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________________ ज्योतिष एवं गणित ४२१ मक्खी, सर्प और विवाह आदि उत्सव देखनेसे एवं स्वप्नमें दाढ़ी, मूंछ और सिरके बाल मुंडवाना देखनेसे मृत्यु होती है। रोगोत्पादक स्वप्न--स्वप्नमें नेत्रोंका रोग होना, कूप, गड़हा, गुफा, अन्धकार और विलमें गिरना देखनेसे; कचौड़ी, पूआ, खिचड़ी और पक्वान्नका भक्षण करना देखनेसे; गरम जल, तैल और स्निग्ध पदार्थोंका पान करना देखनेसे; काले, लाल और मैले वस्त्रोंका पहनना देखनेसे; बिना सूर्यका दिन, बिना चन्द्रमा और तारोंकी रात्रि और असमयमें वर्षाका होना देखनेसे; शुष्क वृक्षपर चढ़ना देखनेसे; हंसना और गाना देखनेसे एवं भयानक पुरुषको पत्थर मारता हुआ देखनेसे शीघ्र रोग होता है। शोघ्र पाणिग्रहण सूचक स्वप्न-स्वप्नमें बालिका, मुरगी ओर क्रौंच पक्षीके देखनेसे; पान, कपूर, अगर, चन्दन और पीले फलोंकी प्राप्ति होना देखनेसे, रण, जुआ और विवादमें विजय होना देखनेसे; दिव्य वस्त्रोंका पहनना देखनेसे; सुवर्ण और चाँदीके बर्तनोंमें खीरका भोजन करना देखनेसे एवं श्रेष्ठ पूज्य पुरुषोंका दर्शन करनेसे शीघ्र विवाह होता है। पाश्चात्य विद्वानोंके मतानुसार स्वप्नोंके फल यों तो पाश्चात्य विद्वानोंने अधिकांश रूपसे स्वप्नोंको निस्सार बताया है, पर कुछ ऐसे भी दार्शनिक है जो स्वप्नोंको सार्थक बतलाते हैं। उनका मत है कि स्वप्नमें हमारी कई अतृप्त इच्छाएँ ही चरितार्थ होती हैं। जैसे हमारे मनमें कहीं भ्रमण करनेकी इच्छा होनेपर स्वप्नमें यह देखना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है कि हम कहीं भ्रमण कर रहे हैं। सम्भव है कि जिस इच्छाने हमें भ्रमणका स्वप्न दिखाया है वही कालान्तरमें हमें भ्रमण करावे । इसलिये स्वप्नमें भावी घटनाओंका आभास मिलना साधारण बात है। कुछ विद्वानोंने इस थ्योरीका नाम Law of probability (सम्भाव्य गणित) रखा है। इस सिद्धान्तके अनुसार कुछ स्वप्नमें देखी गई अतृप्त इच्छाएँ सत्यरूपमें चरितार्थ होती है, क्योंकि बहुत समय कई इच्छाएं अज्ञात होनेके कारण स्वप्नमें प्रकाशित रहती हैं और ये ही इच्छाएँ किसी कारणसे मनमें उदित होकर हमारे तदनुरूप कार्य करा सकती हैं । मानव अपनी इच्छाओंके बलसे ही सांसारिक क्षेत्रमें उन्नति या अवनति करता है, उसके जीवनमें उत्पन्न होनेवाली अनन्त इच्छाओंमें कुछ इच्छाएँ अप्रस्फुटित अवस्था हो विलीन हो जाती हैं, लेकिन कुछ इच्छाएँ परिपक्वावस्था तक चलती रहती हैं । इन इच्छाओंमें इतनी विशेषता होती है कि ये बिना तृप्त हुए लुप्त नहीं हो सकती । सम्भाव्यगणितके सिद्धान्तानुसार जब स्वप्नमें परिपक्वावस्थावाली अतृप्त इच्छाएं प्रतीकाधारको लिए हुए देखी जाती है, उस समय स्वप्नका भावी फल सत्य निकलता है । अबाधभावानुसङ्गसे हमारे मनके अनेक गुप्तभाव प्रतीकोंसे ही प्रकट हो जाते हैं, मनको स्वाभाविकधारा स्वप्न में प्रवाहित होती है जिससे स्वप्न में मनकी अनेक चिन्ताएँ गुपी हुई प्रतीत होती हैं। स्वप्नके साथ संश्लिष्ट मनकी जिन चिन्ताओं और गुप्त भावोंका प्रतीकोंसे आभास मिलता है, वही स्वप्नका अव्यक्त अंश (Latent Content) भावी फलके रूपमें प्रकट होता है । अस्तु, उपलब्ध सामग्रीके आधारपर कुछ स्वप्नोंके फल नीचे दिये जाते हैं अस्वल्प-अपने सिवाय अन्य किसीको अस्वस्थ देखनेसे कष्ट होता है और स्वयं अपनेको अस्वस्थ देखनेसे प्रसन्नता होती है। जी० एच० मिलरके मतमें स्वप्न में स्वयं
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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