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________________ ३७८ भारतीय संस्कृतिके विकास में जैन वाङ्मयका अवदान " (F12 - 1.2) जब 11 = बाध्यवृत्त व्यासाद rh = अन्त वृत्त व्यासाई UTATA (Ellipse) गणितसार संग्रहमें आयत वृत्तका क्षेत्रफल' = २ a b+b' । a = Semi major axis b = Semi minor axis और परिधिके लिए ४a + २b । जैन ग्रन्थोंमें द्विधा विस्तृत क्षेत्र और द्विधाविस्तृत क्षेत्रोंका वर्णन भी मिलता है। इन क्षेत्रोंके गणित और परिमितियां भी वर्णित हैं । धनत्रयस्र-Triangular Pyramid घन चतुरन-Cube घनायत - Rectagular Parallelopiped घनवृत्त-Sphere धन परिमण्डल-Elliptic Cylinder इन समस्त क्षेत्रोंका गणित भी गणितसार संग्रहमें दिया गया है। शंख, मृदंग, शंकु, भवकार, पणवाकार एवं वज्राकार क्षेत्रोंके क्षेत्रफल भी दिये गये हैं। इस प्रकार जैनाचार्योंने गणित सम्बन्धी अनेक मौलिक उद्भावनाएं की है। जन्यव्यवहार और पैशाचिक व्यवहार गणित कल्पना पर आश्रित है । बोज संख्याओंके वर्ग, वर्गान्तर, लम्ब, भुज-संरचना, कर्ण एवं क्षेत्र-परिवर्तन सम्बन्धी अनेक सिद्धान्त उक्त गणित नियमोंमें आये है। इनपर पृथक् प्रकाश डालना ही उपयुक्त होगा। १. वही ७७३-६४ पृ. १९६
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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