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ज्योतिष एवं गणित
३५७ इस प्रकार हम वस्तुओंका बार-बार नाम न लेकर उनकी संख्याको प्रकट करते हैं । यथा२+१-३।
जैनमनीषियोंने गणितके तर्क-ज्ञान द्वारा गणना और संख्यामें अन्तर व्यक्त किया है। संस्थाका मूलाधार तत्व 'समूह' है और समूह 'एक' वस्तुसे नहीं बनता। समूहका निर्माण दो आदि बस्तुओंसे ही होता है, अतः एकको संख्या नहीं कहा जाता । अनुमान यह है-'दो आदि राशियां संख्या है, क्योंकि इनसे समूहोंका निर्माण होता है । जिससे समूहका निर्माण सम्भव न हो, वह संख्या नहीं। एक राशिमें समूह निर्माणकी क्षमता नहीं है, अतः एक राशि संख्या नहीं है।"
अंक विज्ञानका कार्य एकके बिना सम्भव नहीं है, यतः गणना-गिनती एकसे मानी जाती है और गणितकी समस्त क्रियाएँ इसी अंक से आरम्भ होती है । इस प्रकार गणना और संख्याके सूक्ष्म भेदका विश्लेषण कर गणित सम्बन्धी तार्किक प्रतिभाका परिचय दिया है। आज गणित विज्ञानमें तर्कका उपयोग किया जा रहा है और तर्कका आधार गणितको स्वीकार किया जा रहा है । यथा
कम्स ख-ग
अतएव निगमन तर्क पद्धति द्वारा क = ग। क, ख, और ग का कोई भी मूल्य रखा जाय पर परिणाम पूर्वोक्त ही आ जायगा ।
संख्याकी उत्पत्ति एवं उसके लिखनेके प्रकार
संख्याकी उत्पत्तिके दो कारण हैं-(१) व्यवहारिक या व्यावसायिक और (२) पार्मिक । संख्या ज्ञानके बिना लेन-देन सम्बन्धी कोई भी व्यवहारिक कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है । धर्मके साथ भी संख्याका सम्बन्ध है । जैनाचार्योंके आत्मानुसन्धानके लिए संख्याका अन्वेषण किया है। व्यक्त वस्तुओंके पूर्ण ज्ञान द्वारा आत्माकी शक्तिके विकासको अवगत किया जाता है।
जैनवाङ्मयमें संख्याओंके लिखनेको तीन प्रणालियां प्रचलित हैं१. अंकों-द्वारा २. अक्षर संकेतों-द्वारा ३. शब्द संकेतों-द्वारा
अक्षर संकेतों द्वारा संख्याकी अभिव्यक्ति आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्तीके गोम्मटसारमें उपलब्ध होती है। छेदागम और चूणियोंमें भी यह प्रणाली पायी जाती है । इस क्रमानुसार अंकोंका परिझान निम्न प्रकार किया जाता है' :१. कटपयपुरस्थवर्णे नवनवपंचाष्टकल्पितः क्रमशः ।
स्वरमनशून्यं संख्यामात्रोपारिमाक्षरं त्याज्यम् ॥-जीवकाण्ड गाथा १५७ की टीका उब्त । क से लेकर 8 तक नव अक्षरोंसे क्रमशः नव अंक; ट से लेकर आगेके नव अक्षरोंसे क्रमशः नव अंक; से लेकर म तक पांच अक्षरोंसे क्रमशः पांच अंक एवं च से लेकर आठ अक्षरोंसे क्रमशः आठ अंक; सोलह स्वर, ब, न, से शून्य समझना चाहिये । मात्रासे अंक नहीं लिया जाता।