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________________ ज्योतिष एवं गणित ३४१ ४-श्रीधरदेव--श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं. ४२ और ४३ में इस नामके दो आचार्य आये हैं। एक आचार्य दामनन्दिके शिष्य और दूसरे मल्लधारि देवके शिष्य । इस नामके एक आचार्य वैद्यामृतके कर्ता भी माने गये हैं । शास्त्रसारसमुच्चयके टीकाकार माघनन्दीने अपनी गुरुपरम्परामें भी श्रीधरदेवका नाम बताया है। गणितसारके रचयिताका पूरा नाम श्रीधराचार्य है, आचार्य शब्द भी इनके नामके साथ जुड़ा हुआ है अतः प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीधराचार्य उपर्युक्त विद्वानोंसे भिन्न हैं । नन्दिसंघ बलात्कारगणके आचार्योंमें श्रीधराचार्यका नाम यथावत् मिलता है । दशभक्त्यादि महाशास्त्रमें कविवर वर्धमानने नन्दिसंघ बलात्कारगणकी गुर्वावली निम्न प्रकार दी है :- . __ वर्द्धमान भट्टारक, पद्मनन्दी, श्रीधराचार्य', देवचन्द्र, कनकचन्द्र, नयकीति, रविचन्द्रदेव, श्रुतकीत्तिदेव, वीरनन्दी, जिनचन्द्रदेव, भट्टारक वर्धमान, श्रीधर पंडित, वासुपूज्य, उदयचन्द्र, कुमुदचंद्र, माघनंदी, वर्द्धमान, माणिक्यनंदी, गुणकीति, गुणचंद्र अभयनंदी, सकलचंद्र, त्रिभुवनचंद्र, चंद्रकोत्ति, श्रुतकीति, वर्द्धमान, विद्य वासुपूज्य, कुमुदचंद्र और भुवनचंद्र। उपर्युक्त गुर्वावलीमें श्रीधराचार्य और श्रीधर पंडित ये दो व्यक्ति आये हैं। इनमें श्रीधराचार्य गणितसार, जातक तिलक, कन्नड़ लीलावती आदि ज्योतिष विषयक ग्रंथोंके रचयिता और श्रीधर पंडित जयकुमार चरितके रचयिता हैं । श्रीधराचार्यका समय ___ 'कर्णाटक कवि चरिते' के एक उद्धरणसे पता लगता है कि श्रीधराचार्य के 'जातकतिलक' का रचनाकाल १०४९ ईस्वी है। महावीराचार्य के गणितसारमें "धनं धनर्णयोर्वर्गो धुले स्वर्ण तयोः क्रमात् । ऋणं स्वरूपतोऽवर्गो यतस्तस्मान्न तत्पदम् ॥" यह श्रीधराचार्यका सूत्र आया है, इससे स्पष्ट है कि श्रीधराचार्य महावीराचार्यके पूर्ववर्ती हैं । महावीराचार्यने अपने गणितसारमें अमोघवर्षका निम्न प्रकार स्मरण किया है : श्रीणितः प्राणिशस्योघो निरीतिनिरवग्रहः । श्रीमतामोघवर्षेण येन स्वेष्टहितैषिणा ।। विध्वस्तैकान्तपक्षस्य स्याद्वादन्यायवादिनः । देवस्य नृपतुङ्गस्य वद्धतां तस्य शासनम् ॥ . इससे स्पष्ट है कि अमोघवर्षके शासनकालमें गणितसारकी रचना हुई है। इस राष्ट्रकूटवंशी राजाका समय ईस्वी सन् ८१५ से ८६५ तक माना जाता है। इसीलिये .. १. तस्य मौखष्पग्रनन्दी विद्यशो गुणालयः । अभवच्छ्रीधराचार्यस्तत्सधर्मा महाप्रभः ॥ -दशभक्त्यादि महाशास्त्र, पृ० १०१ २. देखें 'प्राचीन भारतके राजवंश' भाग ३, पृ० १२ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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