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________________ ३४८ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान नैयायिकके रूपमें नहीं। और न न्यायकन्दलीसे ही कहीं व्यक्त होता है कि ये ही प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीधराचार्य है। इसके अलावा ऐसे अनेक सबल प्रमाण है जिनसे ज्योतिविद् श्रीधराचार्यका अस्तित्व पृथक् सिद्ध होता है । अतएव न्यायकन्दलीकार भट्ट श्रीधराचार्यसे भिन्न गणितसारके रचयिता हैं। ६-श्रीधर मिश्र-दानपरीक्षा, भ्रष्टवैष्णवखण्डन, शुष्कज्ञान निरादर और वैद्यमनोत्सव नामक ग्रन्थोंके रचयिता हैं। ७-पुरुषोत्तम सरस्वतीके गुरु तथा रामश्रीपाद शिष्य हरिहरानन्दके शिष्य एक श्रीधराचार्य हैं। इनका बनाया हुआ सिद्धान्त तत्त्वबिन्दु-सन्दीपन नामक ग्रन्थ बताया गया है। छान-बीन करनेपर श्रीधराचार्य नामक अजैन विद्वानोंमें से कोई भी गणितसार, जातक तिलक, ज्योतिनिविधि आदि ज्योतिष विषयक ग्रन्थोंके रचयिता नहीं जंचते हैं। श्रीधराचार्य नामके अन्यान्य उल्लेख १-श्री प्रेमीजी द्वारा लिखित दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके प्रन्य' नामक पुस्तकसे एक श्रीधराचार्यकी सूचना मिलती है, जो कि श्रुतावतार गद्य और भविष्यदत्त चरित्र नामक ग्रन्थोंके रचयिता है। २-सुकुमाल चरिउके रचयिता' श्रीधराचार्य अपभ्रंशके प्रसिद्ध कवि हैं । इस ग्रन्थकी रचनाका कारण इस प्रकार बताया है कि एक दिन बलद (बलडइ) के जैन मन्दिर में, जहाँके शासक गोविन्दचन्द्र थे; पप्रचन्द्र नामक एक मुनि उपदेश दे रहे थे। उपदेशमें उन्होंने सुकुमाल स्वामीका भी उल्लेख किया । श्रोताओंमें पीछे साहुका पुत्र कुमार नामक एक व्यक्ति था, जिसने कि सुकुमाल स्वामीकी कथाके विषयमें अधिक जाननेकी इच्छा प्रकट की थी। किन्तु मुनिराजन कुमारको श्रीधराचार्य नामक कविकी अभ्यर्थना करनेको कहा, जो कि उसकी जिज्ञासा शान्त कर सकते थे। अतः श्रीधराचार्यको कुमारने सुकुमाल चरितकी रचना करनेको प्रेरित किया। कुमार साहुको पुरवाड कुलका बताया है । कविने अपनी कृति भी इन्हींको समर्पित की है । ग्रन्थ समाप्तिको तिथि निम्न प्रकार दी गई है बारहसयइं गयइं कयहरिसइं । अट्रोत्तरइ महीयले वरिसई। कसणपक्खे अग्गहणे जायए। तिज्जदिवसे ससिवारि समापए। अर्थात् १२०८ वर्ष व्यतीत होने पर मार्गशीर्ष कृष्णा तृतीया चन्द्रवारको समाप्त किया। ३-सेन संघमें श्रीधर नामके एक प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं, यह काव्य-शास्त्रके मर्मज्ञ, नाना शास्त्रोंके पारगामी विश्वलोचन कोशके कर्ता हैं । इनके गुरुका नाम मुनिसेन बताया जाता है। १. इनकी सूचना मुझे श्री रामसिंह तोमर एम० ए० रिसर्च स्कालर शान्ति निकेतन (बंगाल) से मिली है। लेखक
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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