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________________ जैनाचार्य ऋषिपत्र और उनका ज्योतिष शास्त्रको योगदान जैनाचार्य ऋषिपुत्र ज्योतिषके प्रकाण्ड विद्वान् थे । इनके वंशादिका सम्यक् परिचय नहीं मिलता है, पर Catalogus Catalagorum में इनके सम्बन्धमें बताया गया है कि "This is Kraushtuki, The son of Garga." इससे स्पष्ट है कि यह जैनाचार्य गर्गके पुत्र थे। जैनाचार्य गर्ग ज्योतिशास्त्रके प्रकाण्ड विद्वान् थे। पटना खुदाबख्शखां पब्लिक लाइब्रेरीमें मुझे वहाँ इन्हीं गर्गाचार्यका एक ज्योतिष-ग्रन्थ “पाशकेवली" नामका मिला है । यद्यपि यह ग्रन्थ अत्यन्त अशुद्ध है, पर इससे जैन ज्योतिष पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । उसके अन्तमें लिखा है कि "जैन आसीज्जगद्वंद्यो गर्गनामा महामुनिः । तेन स्वयं निर्णीतेयं सत्पाशात्रकेवली ॥ एतज्ज्ञानं महाज्ञानं जैनर्षिभिरुदाहृतम् । प्रकाश्य शुद्धशीलाय कुलीनाय महात्मना । शनी गुहलिकां दत्त्वा पूजापूर्वकमघवाकुमारी भव्यास्थासने स्थापयित्वा पाशको ढालाप्यते पश्चाच्छुभाशुभं ब्रवीति-इति गर्गनामामहर्षिविरचितः पाशकेवली सम्पूर्णः ॥" इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि गर्गाचार्य ज्योतिषशास्त्रके बड़े भारी विद्वान् थे, इसलिये बहुत कुछ संभव है कि इन्हींके वंशमें आचार्य ऋषिपुत्र भी हुए हों। लेकिन निश्चित प्रमाणके अभावमें उनके वंशका निर्णय करना जरा टेढ़ी खीर है। जैनेतर ज्योतिष-ग्रन्थ, वाराहीसंहिता और अद्भुतसागरमें इनके जो वचन उद्धृत किये गये हैं, उनसे इनकी ज्योतिष सम्बन्धी विद्वत्ता और समय निर्णय पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । ज्योतिषशास्त्रके विभिन्न अङ्गोंमेंसे आचार्य ऋषिपुत्रने निमित्तशास्त्र-शकुनशास्त्र और संहिताशास्त्र-ग्रहोंकी स्थिति द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमानकालीन फल, भूशोधन, दिक्शोधन, शल्योढार, मेलापक, आयाद्यानयन, गृहोपकरण, गृहप्रवेश, उल्कापात, गन्धर्वनगर एवं ग्रहोंके उदयास्तका फल आदि बातोंके प्रतिपादक शास्त्रका प्रणयन किया है। Catalogus Catalagorum में इनकी एक संहिताका भी उल्लेख है। उसमें बताया है कि "ऋषिपुत्र संहिता-quoted in Madanaratna." अर्थात् मदनरत्न नामक ग्रन्थमें ऋषिपुत्र संहिताका उल्लेख है, पर आज वह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। जैन-सिद्वान्त-भवन आरामें कई संस्कृत ग्रंथोंके सूचीपत्र (Catalogues) हैं, उनमें किसी भी ऋषिपुत्र संहिताका नाम नहीं है, इससे मालूम पड़ता है कि वह अमूल्य निधि नष्टप्राय है । भारतीय ज्योतिषशास्त्रके इतिहासप' दृष्टिपात करनेसे मालूम होगा कि शकुनशास्त्र और संहिताशास्त्रका प्रचार ईस्वी सन्को १ वीं शताब्दी और ११ वीं शताब्दीके मध्यमें
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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