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________________ ३३२ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान ६. ५ मासोंमें १२४ चान्द्रपक्ष होते हैं तो ३ सौरमासमें कितने हुए ? इस प्रकार अनुपात करनेसे यह नतीजा निकलता है। ३४१२४ = ३१यह शेष रखा। दूसरे विषुपमें छः सौरमास होंगे, इसलिये उसके अन्तर्गत पक्ष x ३ दो विषुपमें क्षेप एक गुणा और तीनमें द्विगुण तथा चारमें तिगुणा इस प्रकारसे इष्ट विषुपमें एक कम गुणा मानना पड़ेगा। अतः (वि-१) इसको पक्षोंसे गुणा कर देनेसे अभीष्ट विष्प संख्या आ जायेगी। अतः अभीष्ट विषुप संख्या = वि-(अन्तर्गत पक्ष) पक्ष = ६२ (वि-१) = ६२वि. - ६२ इसमें क्षेपको जोड़ देने पर युगादिसे विषुप संख्या आ जावेगी। २ = १२ वि.-६ + रवि.-.६(२ वि.-१)पक्ष + (२वि...) ४१५ तिथि = ६(२ वि.-१) पक्ष + ३ (२ वि.-१) तिथि । यहाँ पर दो गुणा करके दो से ही भाग देने पर राशिमें कोई भी अन्तर नहीं होगा, इसलिये ६(२-वि.-१)पक्ष + ६(२वि.-१) इस प्रकार से आचार्य-कृत करण-सूत्र निष्पन्न हो गया। इसी अभिप्रायका आर्य ज्योतिषमें भी एक करण-सूत्र है विषुवत् तद्गुणं द्वाभ्यां रूपहीनं तु षड्गुणम् । यल्लब्ध तानि सर्वाणि तदर्धं सा तिथिर्भवेत् ॥ इस प्रकारसे आचार्यने युगमें विषुप का साधन किया है । उत्तरायण और दक्षिणायनमें तिथि नक्षत्र लाने का विचार वेगाउट्टिगुणं तेसीदि सदं सहिद तिगुणगुणरूवे । पण्णरभजिदे पव्वासेसा तिहिमाणमयणस्स ।। अर्थ-विवक्षित आवृत्ति मेंसे एक घटाकर शेषको १८३ से गुणा करके गुणनफलमें गुणाकारको तीनसे गुणाकर जोड़ दें और योगफल में एक और मिलानेसे जो हो उसमें १५का भाग देनेसे लब्ध पर्व और शेष तिथि आयेगी। इस प्रकारसे आचार्यने तिथि और पर्वका अयनमें साधन किया है । वेदाङ्ग-ज्योतिष और गर्गसंहितामें भी इसी आशयका सूत्र है। क्योंकि वहाँपर भी पञ्चवर्षीय युग मानकरके ही उत्तरायण और दक्षिणायनमें पर्व और तिथिका मान निकाला है। आचार्यकृत सूत्रकी उपपत्ति बहुत आसानीसे सिद्ध होती है । अतएव आचार्यकी युक्ति महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है। क्योंकि ज्योतिष शास्त्रमें जिसकी वासना सरल एवं सहजमें सिद्ध हो वह सूत्र सर्वमान्य होता है। आचार्यकी वासना निम्न प्रकारसे है-इनके मतसे एक अयनसे दूसरे अयन-पर्यन्त तिथिको संख्या ६ अधिक होती है । अतएव एक अयनसे दूसरे अयन-पर्यन्त चान्द्र दिन - चान्द्र वर्ष ३७२ २. १८६ तिथि ....
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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