SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान अतः शरीराकृति, रूपरंग, संस्थान, रोग, व्याधियाँ, शारीरिक सुख, पारिवारिक सुख, मानसिक सुख, सन्तोष, शान्ति, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, प्रतिभा आदि का विचार किया जाता है। ग्रहोंका जीवधारियों के साथ क्यों और कैसा सम्बन्ध है ? प्राणियोंकी गति, क्रिया और शीलकी अभिव्यञ्जना ग्रहोंके द्वारा किस प्रकार सम्पन्न होती है ? जीवनका रहस्योद्घाटन ग्रहोंकी संयोगी स्थितियों द्वारा किस प्रकार सम्भव होता है ? आदि प्रश्नोंपर जातकतत्त्वके विवेचन प्रसंगमें विचार करना आवश्यक है। ___भारतीय ज्योतिष परम्पराकी दृष्टिसे जातक-जीवन एक भचक्र है और चक्रवत् ही इसका समुचित अध्ययन हो सकता है । भचक्रके गणितीय अध्ययनकी प्रक्रियाम पिण्ड और ब्रह्माण्डीय और मण्डलकी विद्यमान समता और सन्तुलनको ध्यानमें रखकर भारतीय ऋषियोंने बारह राशियोंके समान जीवनको भी द्वादशात्मक वृत्तमें बाँटा है। इसी द्वादशात्मक भचक्रके पूर्ण और अंशात्मक नामि रूप बिन्दुओंपर ग्रहोंके तात्त्विक भोगोंके परिणाम जीवनके भिन्न-भिन्न समयोंमें कौन-कौनसे परिवर्तन ला सकेंगे, यही जाननेकी प्रक्रिया जातकशास्त्र है। जातक और कर्म सम्बन्ध जातक शास्त्रको अवगत करनेके हेतु आत्मा और कर्म के सम्बन्धमें जान लेना आवश्यक है। जातक तत्त्वका सम्यक् ज्ञान कर्मसम्बन्धो मान्यताको अवगत किये बिना सम्भव नहीं। श्री के० एस० कृष्णमूर्तिने ज्योतिषको कर्म-फल द्योतक शास्त्र बतलाते हुए लिखा है___Karma is a sanskrit word. 'Kri' means 'action' or deed'. Daymental or physical action in called 'Karma', every action produces its reaction or result which is known as Karma. Thus Karma includes both the action and the result governed by the irresistible law of Causation. So under the law of Karma. There is nothing as a chonce or an accident. The so called chances and accident are in reality the praducts of some difinite couses which may not be aware of before hand. That which appears to be tccidental or providental to a non-astrological mind is a natural and in-evitable incident to an ashologer. Hence chances. luck or misfortune ar governed absolutely by the low of causation or Karma. 9 अर्थात्-'कर्म' संस्कृत शब्द है और यह कृ धातुसे निष्पन्न है, जिसका अर्थ क्रिया करना या कार्य करना है । कोई भी मानसिक या शारीरिक क्रिया कर्म कही जाती है। प्रत्येक क्रियासे कोई न कोई प्रतिक्रिया या परिणाम उत्पन्न होता है, जिसे कर्म, भाग्य या अदृष्ट कहते हैं । इस प्रकार कर्मके अन्तर्गत क्रिया और परिणाम दोनों ही सम्मिलित हैं, जो अवश्यम्भावी कार्य-कारण-सिद्धान्तके द्वारा नियन्त्रित होते हैं। अतएव कर्म सिद्धान्तके अन्तर्गत सहयोग या घटना का कोई स्थान नहीं है । ये तथा-कथित संयोग और घटनाएं किसी निश्चित कारणके परिणामके स्वरूप है, जिसकी जानकारी हमें नहीं रहती । ज्योतिष ज्ञानसे हीन साधारण व्यक्तिके लिए जो संयोग होता है, वही ज्योतिषीके लिए निश्चित प्राकृतिक घटना होती है । १. कृष्णमूर्ति पद्धति, मद्रास संस्करण, पृष्ठ १७
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy