SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान २४ घटीका दिन होता है, किन्तु उत्तरायणकी समाप्ति पर्यन्त गतिके मन्द हो जानेसे १८ मुहूर्त - ३६ घंटेका दिन होने लगता है और रात १२ मुहूर्त की - ९ घंटा ३६ मिनटकी होने लगती है । इसीप्रकार दक्षिणायनके प्रारम्भमें सूर्य जम्बूद्वीपके भीतरी मार्गसे बाहर की ओर - लवण समुद्रकी ओर मन्द गति से चलता हुआ शीघ्र गतिको प्राप्त होता है जिससे दक्षिणायन के आरम्भमें १८ मुहूर्त्त — १४ घंटा २५ मिनटका दिन और १२ मुहूर्त्त की रात होती है, परन्तु दक्षिणायन के अन्त में शीघ्र गतिके कारण सूर्य अपने रास्तेको शीघ्र तय करता है जिससे १२ मुहूर्त्तका दिन और १८ मुहूर्त्त की रात होती है । मध्य में दिन मान लाने के लिए अनुपातसे १८-१२ - ६ मु० अं०, पहने मु०की प्रतिदिनके दिनमान में उत्तरायण में वृद्धि और दक्षिणायनमें हानि होती है । = यह दिनमान सब जगह समान नहीं होता क्योंकि हमारे निवास रूपी पृथ्वी, जो कि जम्बूद्वीपका एक भाग है समतल नहीं है । यद्यपि जैन पुराणों और कर्णानुयोग में जम्बूद्वीपको समतल माना गया है पर सूर्यप्रज्ञप्ति में पृथ्वीके बीच में हिमवान, महाहिमवान, निषधनील रुक्मि और शिखरिणी इन छः पर्वतोंके आ जाने से यह कहीं ऊँची और कहीं नीची हो गयी है। अतः ऊँचाई और निचाई अर्थात् अक्षांश और देशान्तरके कारण दिनमानमें अन्तर पड़ जाता है । सूर्यप्रज्ञप्ति में छायासाधन तथा पंचवर्षात्मक युगके नाक्षत्र आदिके प्रमाण वर्त्तमान या ग्रीक मानों की अपेक्षा सर्वथा भिन्न है । सूर्यप्रज्ञप्ति में पंचवर्षात्मक युगमें चन्द्रमाके ६७ भगण तथा सूर्य ६२ भगण होते हैं । पूर्णिमाके दिन सूर्यसे चन्द्रमा ४०९ मुहूर्त्त ४३ वस्ति प्रमाण अन्तरपर रहता है । जिस समय युगारम्भ होता है उस समय श्रवण नक्षत्र २७८ डिग्रीपर रहता है। अभिजित्का आगमन प्रायः सर्वदा ही आषाढ़ी पूर्णिमाके अन्तिम भाग या श्रावण कृष्ण प्रतिपदाके पूर्व भाग में होता है । पाँच वर्षोंके नाक्षत्र आदि वर्षोंके दिनोंका प्रमाण निम्न प्रकार हैं : -- (१) नाक्षत्र वर्ष - ३२७ दिन (२) चान्द्रवर्ष - ३५४ ३ दिन (३) ऋतुवर्ष - ३६० दिन (४) अभिवर्द्धन वर्ष - ३८३४ दिन (५) सूर्य वर्ष - ३६६ दिन कुल पंच वर्षोंका योग १७९१ दिन १९ मुहुर्त और ५७ वस्ति है । उपर्युक्त विवेचनको ध्यान में रखकर यदि विचार किया जाय जो सूर्यप्रज्ञप्ति में निम्न सिद्धान्तों का मौलिक रूपसे प्रतिपादन हुआ है जिनकी ग्रीक ज्योतिषसे कोई समता ही नहीं । (१) ग्रीक ज्योतिष में पंचवर्षात्मक युगका मान १७६७ दिन माना गया है, जबकि सूर्य प्रज्ञप्ति में १७९१ से कुछ अधिक मान आया है । (२) ग्रीक ज्योतिष में छायाका साधन मध्याह्नकी छायापरसे किया गया है पर सूर्य - प्रज्ञप्ति में पूर्वाह्न कालीन छायाको लेकर ही गणित क्रिया की गई है। सूर्यप्रज्ञप्ति में मध्याह्न कालीन छायाका नाम पौरुषी बतलाया गया है। लिखा है कि २४ अंगुल प्रमाण शंकु या की छाया मध्याह्न गर्मीके उस दिन जब कि सूर्य भूमध्यरेखासे अति दूर होता है, ८ अंगुल
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy