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________________ ग्रीकपूर्व जैन-ज्योतिष विचार-धारा प्रस्तावना जैनाचार्योंने ई० सन् की कई शताब्दियोंके पूर्व ही ज्योतिष विषयपर लिखना आरम्भ किया था। इनके सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, ज्योतिष्करण्डक आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इन ग्रंथोंमें प्रतिपादित सिद्धान्तोंपर ग्रीक ज्योतिषका बिलकुल भी प्रभाव नहीं है । इन ग्रंथोंमें प्रतिपादित ज्योतिष सिद्धान्त मौलिक हैं तथा कथन करनेकी प्रणाली भी अपनी निजी है । श्री श्याम शास्त्रीने अपनी वेदांग ज्योतिषकी प्रस्तावनामें जैन ज्योतिषकी ई० पूर्व कालीन महत्ताको स्वीकार करते हुए बताया है कि जैन ज्योतिष ब्राह्मण ग्रंथोंकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । सूर्यप्रज्ञप्तिका युगमान वेदांगको अपेक्षा अधिक परिष्कृत है। यदि तुलनात्मक दृष्टिसे प्राचीन जैन-ज्योतिष ग्रंथोंका आलोड़न किया जाय तो अवगत होगा कि ग्रीक ज्योतिषके सिद्धान्तोंसे भिन्न मौलिक रूपमें मासगणना, युगगणना तथा लग्न आदिका निरूपण किया गया है। ग्रीक और भारतीय ज्योतिष निष्पक्ष अन्वेषक विद्वानोंने इस बातको मुक्त कंठसे स्वीकार किया है कि प्रथम आर्यभट्ट से लेकर बराहमिहिर तक भारतीय आचार्योंके ज्योतिष सिद्धान्तोंपर ग्रीक ज्योतिषका प्रभाव है। इसी कारण कतिपय मान्य विद्वानोंने भारतीय ज्योतिषको ग्रीक ज्योतिषसे पूर्ण प्रभावित माना है । प्रमाणमें होरा, हिबुक, द्रेष्काण, कंटक, मुन्था, यमया, मणउ आदि शब्दोंको उद्धृत करते हैं । भारतीय ज्योतिषमें इन पारिभाषिक शब्दोंका प्रयोग प्रचुरतासे हुआ है । राशि तथा चान्द्रमास और नक्षत्रांत लग्नकी गणना भी ग्रीक ज्योतिषके प्रभावसे आयी हैं। यों तो दोनों ही ज्योतिषोंके मूल सिद्धान्त पृथक्-पृथक् हैं तथा ग्रहोंके स्थान निर्धारण और काल निरूपणकी प्रणाली भी बिलकुल भिन्न है। सूर्यप्रज्ञप्तिके सिद्धान्तोंकी मौलिकता ___ ई० सन् से दो सौ वर्ष पूर्वकी यह रचना निर्विवाद सिद्ध है। इसमें पंचवर्षात्मक युग मानकर तिथि नक्षत्रादिका साधन किया गया है। भगवान् महावीरकी शासनतिथि श्रावण कृष्ण प्रतिपदासे जब कि चन्द्रमा अभिजित नक्षत्र पर रहता है; युगारम्भ माना गया है। दिनमानका निरूपण करते हुए लिखा है-"तस्से आदि च्चरस्स संवच्छरस्स सई अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति । सइं अट्ठारस मुहुत्ता रातो भवति सइंदुवालि समुहुते दिवसे भवति सइंदुबाल समुहुत्ता राती भवति । पढ मे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुत्ता राती भवति । दोच्च छम्मासे अट्ठारसमुहुते दिवसे णत्थि अट्ठारस मुहुत्ता राती अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे पठमे छम्मासे दोच्चे छम्मासे णत्थि"। _अर्थात्-उत्तरायणमें सूर्य लवण समुद्रके बाहरी मार्गसे जम्बूद्वीपकी ओर आता है और इस मार्गके प्रारम्भमें सूर्यकी चाल सिंहगति, भीतर जम्बूद्वीपके आते-आते क्रमशः मन्द होती हुई गज गतिको प्राप्त हो जाती है । इस कारण उत्तरायणके आरम्भमें बारह मुहूर्त
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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