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________________ ज्योतिष एवं गणित ___२८१ वजसेन गुक्के पट्टधर श्री हेमतिलक सूरिके प्रसादसे रत्नशेखर सूरिने दिनशुद्धि प्रकरण की रचना की। इसे 'मुनिमणभवणपयासं' अर्थात् मुनियोंके मन रूपी भवनको प्रकाशित करनेको कहा है। इसमें कुल १४४ गाथाएँ हैं । इस ग्रन्थमें वारदार, काथहोरा, वारप्रारम्भ कुलिकादियोग वर्ण्यप्रहर नन्दभद्रादि संज्ञाएँ, क्रूरतिथि, वर्ण्यतिथियोग अमृतसिद्धियोग, उत्पादियोग, लग्नविचार, प्रयाणकालीन शुभाशुभं विचार, वास्तु मुहूर्त, षडष्टकादि, राशिकूट, नक्षत्रयोनिविचार, विविध मुहूर्त, नक्षत्र दोष विचार, छायासाधन और उसके द्वारा फलादेश एवं विभिन्न प्रकारके शकुनोंका विवेचन किया गया है । यह ग्रन्थ व्यवहारोपयोगी है। चौदहवीं शताब्दीमें ठक्कर फेरुका नाम भी उल्लेखनीय है । उन्होंने गणितसार और जोइससार ये दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। गणितसारमें पाटीगणित और परिकर्माष्टककी मीमांसाकी गई है । जोइससारमें नक्षत्रोंकी नामावलीसे लेकर ग्रहोंके विभिन्न योगोंका सम्यक् विवेचन किया गया है। ___ उपर्युक्त ग्रन्थोंके अतिरिक्त हर्षकीर्ति कृत जन्मपत्रपद्धति, जिनवल्लभ कृत स्वप्नसंहित, जयविजय कृत शकुन दीपिका, पुण्यतिलक कृत ग्रहायुसाधन, गर्ग मुनि कृत पासावली, समुद्र कवि कृत सामुद्रिक शास्त्र, मानसागर कृत मानसागरीपद्धति, जिनसेनकृत निमित्तदीपक आदि ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण हैं । ज्योतिषसार, ज्योतिषसंग्रह, शकुनसंग्रह, शकुनदीपिका, शकुनविचार, जन्मपत्री पद्धति, ग्रहयोग, ग्रहफल नामके अनेक ऐसे संग्रह ग्रन्थ उपलब्ध हैं, जिनके कर्ताका. पता ही नहीं चलता है । अर्वाचीन कालमें कई अच्छे ज्योतिविद् हुए हैं। जिन्होंने जैन ज्योतिषसाहित्यको बहुत आगे बढ़ाया ।' यहाँ प्रमुख लेखकोंका उनकी कृतियोंके साथ परिचय दिया जाता है । इस युगके सबसे प्रमुख मेघविजयगणि ज्योतिष शास्त्रके प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनका समय वि० सं० १७३७ के आस-पास माना गया है । इनके द्वारा रचित मेघमहोदय या वर्षप्रबोध, उदयदीपिका रमलशास्त्र और हस्तसंजीवन आदि मुख्य है । वर्ष-प्रबोधमें १३ अधिकार और ३५ प्रकरण है। इसमें उत्पातप्रकरण, कर्पूरचक्र, पद्मिनीचक्र मण्डलप्रकरण, सूर्य और चन्द्रग्रहणका फल, मास-वायु विचार, संवत्सरका फल, ग्रहोंके उदयास्त और वक्री-अयन मास-पद विचार, संक्रान्तिफल, वर्षके राजा, मंत्री, धान्येश, रसेरा आदिका निरूपण, आयव्यय विचार, सर्वतोभद्रचक्र एवं शकुन आदि विषयोंका निरूपण किया गया है। ज्योतिष विषयकी जानकारी प्राप्त करनेके लिए यह रचना उपयोगी है। हस्तसंजीवनमें तीन अधिकार है। प्रथम दर्शनाधिकारमें हाथ देखनेकी प्रक्रिया, हाथकी रेखाओं परसे ही मास, दिन, घटी, फल आदिका कथन एवं हस्तरेखाओंके आधार पर ही लग्नकुण्डली तथा उसका फलादेश निरूपण करना वर्जित है । द्वितीय स्पर्शनाधिकारमें हाथको रेखाओंके स्पर्श परसे ही समस्त शुभाशुम फलका प्रतिपादन कियागया है । इस अधिकारमें मूक प्रश्नोंके उत्तर देनेकी प्रक्रिया भी वर्णित है । तृतीय विमर्शनाधिकारमें रेखाओं परसे ही आयु, संतान, स्त्री, भाग्योदय, जीवनकी प्रमुख घटनाएं, सांसारिक सुख, विद्या, बुद्धि, १. केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणिका प्रस्तावना भाग ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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