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________________ ज्योतिष एवं गणित २७९ यन्त्रराज नामक ग्रह गणितका उपयोगी ग्रन्थ लिखा है। इनके शिष्य मलयेन्दु सरिने इसपर सोदाहरण टीका लिखी है । इस ग्रन्थमें परमाक्रक्ति २३ अंश ३५ कला मानी गयी है। इसकी रचना शक संवत् १२९२ में हुई है। इसमें गणिताध्याय, यन्त्रघटनाघ्याय, यन्त्ररचनाध्याय यन्त्रशोधनाध्याय और यन्त्रविचारणाध्याय ये पांच अध्याय हैं । क्रमोन्क्रमज्यानयन, भुजकोटिज्याका चापसाधन, क्रान्तिसाधक धुज्थाखंडसाधन, धुज्याफलानयन, सौम्य गणितके विभिन्न गणितोंका साधन, अक्षांशसे उन्नतांश साधन, ग्रंथके नक्षत्र ध्रुवादिकसे अभीष्ट वर्षके ध्रुवादिकका साधन, नक्षत्रोंके हक्कर्मसाधन, द्वादश राशियोंके विभिन्नकृत सम्बन्धी गणितोंका साधन, इष्ट शंकुसे छायाकरण साधन यन्त्रशोधन प्रकार और उसके अनुसार विभिन्न राशि नक्षत्रोंके गणितका साधन, द्वादश भाव और नवग्रहोंके स्पष्टोकरणका, गणित एवं विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहोंके साधनका गणित बहुत सुन्दर ढगसे बताया गया है। इस ग्रन्थमें पंचांग निर्माण करनेकी विधिका निरूपण किया है । .. भद्रबाहुसंहिता अष्टांग निमित्तका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके आरम्भके २७ अध्यायोंमें निमित्त और संहिता विषयका प्रतिपादन किया गया है। ३०वें अध्यायमें अरिष्टों का वर्णन किया गया है । इस ग्रन्थका निर्माण श्रुतके वली भद्रबाहुके वचनोंके आधार पर हुआ है। विषयनिरूपण और शैलीकी दृष्टिसे इसका रचनाकाल ८-९वीं शतीके पश्चात् नहीं हो सकता है । हाँ, लोकोपयोगी रचना होनेके कारण उसमें समय-समय पर संशोधन और परिवर्तन होता रहता है। इस ग्रन्थमें व्यंजन, अंग, स्वर, भौम, छन्न, अंतरीक्ष, लक्षण एवं स्वपन इन आठों निमित्तोंका फलनिरूपण सहित विवेचन ग्रहयुद्ध, स्वपन, मुहूर्त, तिथि, करण, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, इन्द्रसम्पदा लक्षण, व्यंजन, चिन्ह, लन्न, विद्या, औषध, प्रभृति सभी निमित्तोंके बलाबल, विरोध और पराजय आदि विषयोंका विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। यह निमित्तशास्त्रका बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी ग्रन्थ है। इससे वर्षा, कृषि, धान्यभाव एवं अनेक लोकोपयोगी बातोंकी जानकारी प्राप्तकी जा सकती है। केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणिके रचयिता समन्तभद्रका समय १३वीं शती है । ये समन्तभद्र विजयपके पुत्र थे। विजयपके भाई नेमिचन्द्रके प्रतिष्ठातिलककी रचना आनन्द संवत्सरमें चैत्रमासकी पंचमीको की है । अतः समन्तभद्रका समय १३वीं शती है । इस ग्रन्थमें धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, हानि, रोग, मृत्यु, भोजन, शयन, शकुन, जन्म, कर्म, अस्त्र, शल्य, वृष्टि, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सिद्धि, असिद्धि आदि विषयोंका प्ररूपण किया गया है । इस ग्रन्थमें अ, च ट त प य श अथवा आ ए क च ट प य श इन अक्षरोंका प्रथम वर्ग, आ ऐ ख छ ठ थ फ र प इन अक्षरोंका द्वितीय वर्ग, इ ओ ग ज ड द ब ल स इन अक्षरोंका तृतीय वर्ग ई औ ध झ भ व ह न अक्षरोंका चतुर्थ वर्ग और उ ऊ ण न म अं अः इन अक्षरोंको पंचम वर्ग बताया गया है। प्रश्नकर्ताके वाक्य या प्रश्नाक्षरोंको ग्रहण कर संयुक्त, असंयुक्त, अभिहित और अभिघातित इन पांचों द्वारा तथा आलिंगित अभूधूमित और दग्ध इन तीनों क्रियाविशेषणों द्वारा प्रश्नोंके फलाफलका विचार किया गया है । इस ग्रंथमें मूक प्रश्नोंके उत्तर भी निकाले गये हैं । यह प्रश्न शास्त्रकी दृष्टिसे अत्यन्त उपयोगी है।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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