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________________ ज्योतिष एवं गणित २७१ सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य के गमनमार्ग, आयु, परिवार आदिके प्रतिपादनके साथ पंचवर्षात्मिक युग के अयनोंके नक्षत्र, तिथि और मासका वर्णन भी किया गया है । चन्द्रप्रज्ञप्तिका विषय प्रायः सूर्यप्रज्ञप्ति के समान है । विषयकी अपेक्षा यह सूर्यप्रज्ञप्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण है इसमें सूर्यकी प्रतिदिन की योजनात्मिका गति निकाली गयी है तथा उत्तरायण और दक्षिणायनकी वीथियोंका अलग-अलग विस्तार निकाल कर सूर्य और चन्द्र की गति निश्-ि चत की गई है । इसके चतुर्थ प्राभृत में चन्द्र और सूर्यका संस्थान तथा तापक्षेत्रका संस्थान विस्तार से बताया गया है । इसमें समचतुस्र आदि विभिन्न आकारोंका खण्डन कर सोलह वीथियोंमें चन्द्रमाको समचतुस्र गोल आकार बताया गया है। इसका कारण यह है कि सुषमा • सुषम कालके आदिमें श्रावणकृष्ण प्रतिपदाके दिन जम्बूद्वीपका प्रथम सूर्य पूर्व दक्षिण-अग्निकोणमें और द्वित्तीय चन्द्रमा पश्चिम-दक्षिण नैऋत्य कोण में चला । अतएव युगादिमें सूर्य और चन्द्रमा का समचतुस्र संस्थान था, पर उदय होते समय ग्रह वर्तुलाकर निकले, अतः चन्द्रमा और सूर्यका आकार अर्धकपीठ अर्ध समचतुस्र गोल बताया गया है । चन्द्रप्रज्ञप्ति में छाया साधन किया गया है और छाया प्रमाणपरसे दिनमान भी निकाला गया है । ज्योतिषकी दृष्टिसे यह विषय बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । यहाँ प्रश्न किया गया है कि जब अर्धपुरुष प्रमाण छाया हो, उस समय कितना दिन व्यतीत हुआ और कितना शेष रहा ? इसका उत्तर देते हुए कहा है कि ऐसी छाया की स्थिति में दिनमानका तृतीयांश व्यतीत हुआ समझना चाहिए । यहाँ विशेषता इतनी है कि यदि दोपहर के पहले अर्धपुरुष प्रमाण छाया हो तो दिनका तृतीय भाग गत् और दो तिहाई भाग अवशेष तथा दोपहरके बाद अर्धपुरुष प्रमाण छाया हो तो दो तिहाई भाग प्रमाण दिन गत और एक भाग प्रमाण दिन शेष समझना चाहिए। पुरुष प्रमाण छाया होनेपर दिनका चौथाई भाग गत और एक भाग प्रमाण दिन शेष समझना चाहिए । पुरुष प्रमाण छाया होनेपर दिनका चौथाई भाग गत् और तीन चौथाई भाग शेष, डेढ़ पुरुष प्रमाण छाया होने पर दिनका पंचम भाग गत और चार पंचम भाग (भाग) अवशेष दिन समझना चाहिए' इहे ग्रंथ में सोल, त्रिकोण, लम्बी, चौकोर वस्तुओंकी छाया परसे दिनमान का आयन किया गया है । चन्द्रमाके साथ तीस मुहूर्त्त तक योग करने वाले श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृत्तिका, मृगधिर, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढ़ ये पन्द्रह नक्षत्र बताए गये हैं । पैंतालीस मुहूर्त्त तक चन्द्रमाके साथ योग करने वाले उत्तरा भाद्रपद, रोहणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, और उत्तराषाढ़ा ये छः नक्षत्र एवं पन्द्रह मुहूर्त्त तक चन्द्रमाके साथ योग करने वाले शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा ये छः नक्षत्र बताये गये हैं । चन्द्र प्रज्ञप्तिके १९ वें प्राभृतमें चन्द्रमा को स्वतः प्रकाशमान बतलाया है तथा इसके घटने बढ़नेका कारण भी स्पष्ट किया है । १९ वें प्राभृत में पृथ्वी तलसे सूर्यादि ग्रहोंकी ऊँचाई बतलायी गयी है । -- ज्योतिष्करण्ड एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें अयमादिके कथनके साथ नक्षत्र लग्नका भी निरूपण किया गया है । यह लग्न निरूपणकी प्रणाली सर्वथा नवीन और मौलिक है:१. गए वा सेसे वा जाव चऊ भाग गए सेसे वा । चन्द्र प्रज्ञप्ति ९-५ २. अंगविज्जा १० २०६-२०९ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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