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________________ ज्योतिष एवं गणित २५७ निकालने में किसी भी प्रकारकी कठिनाई नहीं आती है । आरम्भ में योजनात्मिका गतिको कात्मिका गति बनानेकी युक्ति दी गयी है । गगनखण्डोंको प्रतिविकलात्मक माना गया है । चन्द्र गगन खण्ड = १७६८ ) ये गमन करनेके कलात्मक खण्ड हैं, सूक्ष्म गणितके रवि गगन खण्ड = १८३० नक्षत्र गगन खण्ड = १८३५ अनुसार इनका चापात्मक मान प्रतिविकलात्मक है । अभिजितका मान ६३० गगनखण्ड, जघन्य नक्षत्रोंका १८०५ गगन खण्ड, मध्यम नक्षत्रोंके २०१० गगन खण्ड, उत्तम नक्षत्रोंके ३०१५ गगन खण्ड हैं । यह नक्षत्रोंकी कलात्मक मर्यादाका मान है । इसपरसे चन्द्रमाके प्रत्येक नक्षत्रका गत्यात्मक मान निम्न प्रकार होगा । ( १८३५ - १७६८ ) = ६७ चन्द्रमाकी कलात्मक स्वतन्त्र गति है । इस गतिका चन्द्रमाके मर्यादा मान में भाग देनेसे दैनिक नक्षत्र अथवा चन्द्रमाके नक्षत्रका मान होता है । अभिजित्का मान हुआ । १६ x १ = .".६ × १ = ९ १ ''។ १५ मुहूर्त चन्द्रमाके प्रत्येक जघन्य नक्षत्रका मध्यम मान हुआ । १ X 2090 = ३० मुहूर्त यह चन्द्रमाके प्रत्येक मध्यम ७५ = ४५ मुहूर्त · यह चन्द्रमाके प्रत्येक उत्तम नक्षत्रका मान हुआ । = ६ 3094 १ X == ३०१५ (१८३५ - १८३० ) = ५ कलात्मक मध्यम सूर्य गति हुई, जो कि आजकल के मानसे ५९ ८" के बराबर होती है। इसका नक्षत्रोंकी मर्यादामें भाग देनेसे सूर्य नक्षत्र मानका प्रमाण आता है । ६३०×१ = ६३० = १२६ मुहूर्त अर्थात् ४ दिन ६ मुहूर्त सूर्य अभिजित् नक्षत्र के साथ रहता है । देशान्तर संस्कार और कालान्तर संस्कार द्वारा गतिके स्पष्टत्वका विवेचन भी आया है । किसी भी देशकी पलभाका ज्ञान करके उसका तीन स्थानों में रखकर प्रथम स्थानमें दशसे, दूसरे में आठसे और तीसरे में दशसे गुणा करना चाहिए। तीसरे स्थानके गुणनफलमें तीनका भाग देकर लब्धिग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार चरखण्ड आयँगे । पुनः सायनसूर्यका भुज बनाकर उसमें राशि संख्या तुल्य चर खण्डों का योग करके, उसमें अंशादिसे गुणे हुए भोगखण्डका तीसवां भाग जोड़ देनेसे चर होता । तुलादि छः राशियोंमें सूर्य हो, तो इसका धन संस्कार तथा मेषादि छः राशियोंमें सूर्य हो तो ऋण संस्कार होता है । इस चरका मध्यम रविकी विकला में संस्कार करनेसे रवि स्पष्ट आता है और चरको दोसे गुणाकर नवका भाग देनेपर जो लब्धि आये, उसका देशान्तर संस्कृत मध्यम चन्द्रमाकी विकलामे संस्कार करने से चन्द्रमा स्पष्ट होता है । आशय यह है कि चन्द्रमामें देशान्तर, भुजान्तर और चरान्तर ये तीन प्रकारके संस्कार किये जाते हैं, तब चन्द्रमा स्पष्ट होता है । इसी मान्यतानुसार बुधादि ग्रहोंका भी साघन किया जा सकता है । योजनात्मिका गति निकालनेके लिये आभ्यन्तर चन्द्रवीथिकी परिधि तथा त्रिज्या और दोका गुणा करनेसे फल प्राप्त होते हैं । चन्द्रमा अन्तःवीथिमें स्थित होने पर एक मुहूर्त में अर्थात् ४८ मिनटमें चन्द्रवीथि परिधयात्मक चलता है, तो एक मिनटमें कितने योजनात्मक चलेगा । इस अनुपात विधिसे चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहोंकी भी योजनात्मिका गति निकाली जा सकती है । यथा ३३
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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