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________________ भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ २२५ यानका भक्तिवाद भक्ति सम्बन्धी उन प्रवृत्तियोंका स्वाभाविक विकास है, जो हमें बुद्धके मूल उपदेशों या स्थविरवाद बौद्धधर्ममें मिलती है । मुक्तिका आश्वासन एक ऐतिहासिक तथ्यपर आधारित होना एक ऐसी ही विशेषता है, जो महायानकी अपनी है। थेरगाथामें कहा है-- "सो भत्तिमा नाम च होति पण्डितो बत्वा च धम्मेसु विसेसिअस्स ।” निष्कर्ष यह है कि भक्तिकी साधना किसी न किसी रूपमें बुद्धधर्मके आविर्भावकाल, बल्कि उसके कुछ पूर्वसे ही प्रचलित थी और उसने अवश्यम्भावीरूपसे महायानके भक्तिवादको प्रभावित किया है । महायानके भक्तिमार्गमें बौद्धदर्शनके प्राचीन तत्त्व ही सम्मिलित नहीं है, अपितु कुछ नवीन तत्त्वोंका समावेश भी हुआ है। इन नवीन तत्त्वोंमें शरणागति सबसे प्रमुख तत्त्व है । बुद्ध परमेश्वर हो गये । उनके नामतत्त्वसे मुक्तिका आश्वासन मिल गया। भक्तिके प्रभावसे नारकीय जीव भी कर्म बन्धनसे छूटने लगे। - २९
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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