SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान दक्षिणापथके सिक्कोंमें आन्ध्रजातीय राजाओंके सिक्के सबसे पुराने हैं। किसी समय आन्ध्र राजाओंका साम्राज्य नर्मदा नदीके दक्षिणी किनारेसे समुद्रतट तक था। इसलिए मालव, सौराष्ट्र, अपरान्त आदि भिन्न-भिन्न देशोंमें भी आन्ध्र राजाओंने भिन्न-भिन्न सिक्के प्रचलित किये थे। आन्ध्र देश कृष्णा और गोदावरी नदीके बीचके प्रदेशमें दो प्रकारके सिक्के प्राप्त हुए हैं। ये दोनों प्रकारके सिक्के पुडुमादि, चन्द्रशाति, श्रीयज्ञ और श्री रुद्र आदि राजाओंने प्रचलित किये थे। पहले प्रकारके सिक्कोंपर एक ओर सुमेरु पर्वत और दूसरी ओर उज्जयिनी नगरका चिन्ह है। इन सिक्कोंका निर्माता वाशिष्ठीपुत्र श्री शातकर्णी, वाशिष्ठीपुत्र श्री चन्द्रशांति, गौतमीपुत्र श्रीयज्ञ शातकर्णी और रुद्रशातकर्णी है ।' __ दूसरे प्रकारके सिक्कोंपर एक ओर घोड़ा, हाथी अथवा दोनोंकी मूर्तियाँ तथा दूसरी ओर सिंहकी मूत्ति है। ये सिक्के श्री चन्द्रशाति, गौतमीपुत्र श्रीयज्ञ शातकर्णी और श्री रुद्र शातकणिके हैं। निश्चय ही ये दोनों प्रकारके सिक्के जैन हैं, क्योंकि इनमें जैन प्रतीकोंका व्यवहार किया गया है। मालवमें आन्ध्र राजवंशके कुछ पुराने सिक्के मिले हैं । स्वर्गीय पंडित भगवानलाल इन्द्रजीने अपने एकत्रित किये हुए सिक्के लंदनके ब्रिटिश म्यूजियमको प्रदान किये हैं। इन सिक्कोंमें दो प्रकारके सिक्के मिलते हैं। इनपर अंकित लेखका जो अंश पढ़ा गया है, उससे पता चलता है कि ये सिक्के आन्ध्र राजाओंके ही हैं। पहले प्रकार के सिक्के ईरानके पुराने सिक्कों के ही समान हैं। कनिंघमने लिखा है कि इस प्रकारके सिक्के पुराने विदिशा नगरी ( बेसनगर ) के खंडहरों में बेस तथा बेतवा नदीके बीच मिले हैं ।" इसी कारण रैप्सनने अनुमान किया है कि ये सभी सिक्के पूर्व मालवके हैं। इन सिक्कोंको चार विभागोंमें बाँटा जा सकता है । पहले विभागके सिक्के पोखीके बने हैं, इनपर एक ओर घेरेमें बोधिवृक्ष, उज्जयिनी नगरका चिन्ह, वृषभ और सूर्य चिन्ह अंकित है। दूसरी ओर हाथी और स्वस्तिक चिन्ह है । दूसरे विभागके सिक्के तांबे के हैं; इनपर एक ओर हाथोकी मूर्ति और दूसरी ओर घेरेमें बोधिवृक्ष ( अशोक वृक्ष ) और उज्जयिनी नगरी के चिन्ह है । तीसरे विभागके सिक्कोंपर पहली ओर सिंहको मूत्ति और वृषभ चिन्ह तथा दूसरी ओर बोधिवृक्ष और उज्जयिनी नगरीके चिन्ह हैं । ये तीसरे विभागके सिक्के भी ताँबेके हैं। चौथे विभागके सिक्के पोटिनके बने हुए हैं। इनपर पहली ओर सिंहकी मूत्ति और स्वस्तिक चिन्ह हैं तथा ब्राह्मी अक्षरोंमें 1. Rapson, catalogue of Indian coins Andhras. w. khtrapas etc. P. IXXII 2. Rapson, catalogue of Indian coins Andhras, w. khtrapas etc. ___P. IXXIV; प्राचीन मुद्रा, पृ० २१४ । 3. Journal of the Bombay Branch of the Royal Asiatic society Vol. ___XIII, 10. 311 4. Rapson, British Museum Coins. XCVI. 5. Cunnigham's Coins of Aneient India, P. 99 6. Rapson, British Museum çoins P, 3 Nos 5-6-7-8-9-11,
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy