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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति ११९ रूप दिया और श्रवणबेलगोलासे एक मीलकी दूरीपर स्थित जिननाथपुर ग्राममें एक भिक्षागृह बनवाया। बंकापुरमें उसने जीर्ण शीर्ण मन्दिरका नवनिर्माण कराया। हुल्लका समस्त समय जिनमन्दिरोंके निर्माण, जिनदेवकी पूजा, जैन साधुओंको आहारदान और जैन शास्त्रोंके श्रवणमें ही व्यतीत होता था। नरसिंहके सेनापति शान्तियण्णने एक बसदिका निर्माण कराया और उसकी व्यवस्थाके लिए भूमि प्रदान की। यह वासुपूज्य सिद्धान्तदेवके शिष्य मल्लिसेन पण्डितका शिष्य था । राजा नरसिंहके ईश्वर चमूपतिने तुमकुर ताल्लुकाके मन्दार हिलकी बसदिका जोर्णोद्धार कराया था। राजा नरसिंहके पुत्र बल्लाल द्वितीयके सेनापतियोंमें रेचिमय्य प्रसिद्ध है । इसका विशेष वर्णन शिकारपुर ताल्लुकाके चिक्क मागडिमें वंशबण्ण मन्दिरके प्रांगण में एक स्तम्भपर उत्कीर्ण सन् १९८२ ई० के अभिलेखमें आया है । बताया है कि एक बार रेचिमय्य राजा बोप्पदेव और शंकर सामन्तके साथ मागडिके जिनेश्वरको पूजाके लिए आया । पूजन करनेके पश्चात् रेचिमय्य दण्डाधीशने शंकर सामन्त द्वारा निर्मापित उस जिनमन्दिरको देखा और बहुत प्रसन्न हुआ तथा तीन पीढ़ियोंके लिए तलब ग्राम इस मन्दिरको प्रदान किया ।' रेचिमय्यके कार्योंमें सबसे अधिक स्थायी कार्य आरसिय केरेमें सहस्र कूट चैत्यालयका निर्माण कराना है। इस चैत्यालयमें उत्कीर्ण अभिलेखमें बताया है कि जब होयसल नरेश वीर बल्लाल देव राजधानी दोरसमुद्रमें रहते हुए राज्य करते थे, आरसियकेरेके निवासियोंकी रत्नत्रय धर्ममें दृढ़ता सुनकर कलचुरिकुलके सचिवोत्तम रेचिमरसने बल्लाल देवके चरणोंमें आश्रय पाकर आरसियकेरेमें सहस्रकूट जिनालयकी स्थापना की। उन भगवान्की अष्टविध पूजन, पुजारी और सेवकोंको आजीविका तथा मन्दिरकी मरम्मतके लिए राजा बल्लालने हन्दरहाल ग्राम प्राप्त करके उसे अपने वंशके गुरु सागरनन्दि सिद्धान्तदेवको सौंप दिया। इसी अभिलेखमें आगे बताया है-राच द्वारा स्थापित सहस्रकूट जिनालयके लिए एक करोड़ रुपया इकट्ठाकर आरसियकेरेमें एक मन्दिर बनवाया. इस जिनालयको समस्त सात करोड़ लोगोंकी सहायता होनेसे इसका नाम एल्ल कोटि जिनालय रखा गया। इस चैत्यालयके लिए एक हजार कुटुम्बोंसे जमीन खरीदी गयी और राजा बल्लालने उस जमीनको कर मुक्त कर दिया । ____ इस अभिलेखसे स्पष्ट है कि रेचिमय्यने जैनधर्मके उत्थानके हेतु अनेक महत्त्पपूर्ण कार्य किये हैं । बल्लाल द्वितीयके मन्त्री नागदेवने भी श्रवण बेलगोलाके पार्श्वनाथ देवके सामने एक रंगशाला तथा पत्थरके चबूतरेका निर्माण कराया था। इस प्रकार दक्षिण भारतमें अनेक महापुरुषोंने मन्दिर निर्माण, ग्रामदान एवं तीर्थ जीर्णोद्धार द्वारा जैन धर्मकी सेवा की है। जैन शासनकी उन्नति करनेवालोंमें परमार्हत् कुमारपालका नाम उल्लेखनीय है । इस राजाका राज्याभिषेक वि० सं० ११९४ में मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशीको सम्पन्न हुआ। इसका राज-जीवन मौर्य सम्राट अशोकके तुल्य है। राज्यासीन होनेपर जिस प्रकार सम्राट अशोकको १. जैन शिलालेख संग्रह, भाग तीन, अभिलेख सं० ४०० तथा मिडियेवल जैनिज्म पृ० १४७-१४८ २. वही अभिलेख सं०.४६५ अरसियरेका संस्कृत और कन्नड़ मिश्रित अभिलेख ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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