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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति आज भी प्रचलित है । किसी गाँवमें जब एक वृक्ष ऐसा दिखलायी पड़ता है, जो पत्तोंसे खूब छतनार हो और फलोंसे लदा हो अपने विशिष्ट लक्षणोंके कारण वह पूजनीय माना जाता है। नायाधम्मकहाके उल्लेखसे स्पष्ट है कि जिस प्रकार वृक्षकी पूजा और उत्सव मनाया जाता था, उसी प्रकार वृक्षोंसे भरे हुए उद्यानमें उत्सवक्रीड़ा, गोष्ठी, समाज आदिका आयोजन किया जाता था । सिद्धर्षिकृत उपमितिभवप्रपंच कथामें उद्यानिका महोत्सवका बहुत सुन्दर वर्णन आया है, इससे विदित होता है कि ऐसे अवसरों पर विशेष भोजका भी प्रबन्ध रहता था । उद्यान क्रीड़ा वसन्त ऋतुमें सम्पन्न होती थी। यक्ष पूजाका प्रचार सर्वाधिक था। इसका उल्लेख जैन आगम साहित्यमें सर्वत्र पाया जाता है । यक्ष सबसे प्रमुख देवता माने जाते ये । शनैः शनैः आर्यदेवोंके सम्पर्कमें आनेसे आर्यदेवोंका प्रभाव बढ़ा और उन्हें यक्षोंकी तुलनामें ऊंचा पद दिया जाने लगा । आगे चलकर यक्षके स्थान गिरने लगे और उसकी गणना भूत-पिशाचादिमें होने लगी । जैन वाङ्मयमें प्रत्येक तीर्थकरके साथ आरक्षक देवताओंके रूपमें यक्ष-यक्षीका सम्बंध जोड़ा गया। ___ अन्य देवी-देवताओंकी पूजा भी उत्सव-पूर्वक सम्पन्न होती थी। रुद्र, तडाग, चैत्य, पर्वत एवं गिरि आदिके उत्सव भी पूजापूर्वक सम्पन्न किये जाते थे। इस प्रकार मगध जनपदमें लोक धर्मका पर्याप्त प्रचार और प्रसार था।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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