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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति इसी वंशमें अर्द्धचक्री प्रतिनारायण जरासिन्धु हुआ। यह महापराक्रमी और रणशूर था, इसके भयसे यादवोंने मथुरा छोड़कर द्वारिकाका आश्रय ग्रहण किया था। राजगृहके साथ जैनधर्मका इतिहास जुड़ा हुआ है। यहाँ भगवान् आदिनाथ और वासुपूज्यके अतिरिक्त अवशेष २२ तीर्थकरोंके समवशरण आये थे। भगवान् महावीरने यहाँ वर्षाकाल व्यतीत किया था तथा इनके प्रमुख भक्त इसी नगर निवासी थे। राजगृहके पंचपहाड़ोंका वर्णन तिलोयपण्णत्ति, धवलाटीका, जयधवलाटीका, हरिवंशपुराण, पद्म पुराण, अणुत्तरोववाई दागसूत्र, भगवतीसूत्र, जम्बू स्वामीचरित्र, मुनिसुव्रतकाव्य, णायकुमारचरिउ, उत्तर पुराण आदि ग्रंथोंमें उपलब्ध है। तिलोयपण्णत्ति में इसे पंचशैलपुर नगर कहा गया है। बताया गया है कि राजगृह नगरके पूर्व में चतुष्कोण ऋषिशैल, दक्षिणमें त्रिकोण वैभार, नैऋत्यमें त्रिकोण विपुलाचल, पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशामें धनुषाकार छिन्न एवं ईशान दिशामें पाण्डु नामका पर्वत है। षट्खंडागमकी धवला टीकामें वीरसेन स्वामीने पंच पहाड़ियोंका उल्लेख करते हुए दो प्राचीन श्लोक उद्धृत किये हैं; जिसमें पंच पहाड़ियोंके नाम क्रमशः ऋषिगिरि, वैभारगिरि, विपुल, चन्द्र और पाण्डु आये हैं।' हरिवंश पुराणमें बताया गया है कि पहला पर्वत ऋषिगिरि है, यह पूर्व दिशा की ओर चौकोर है, इसके चारों ओर झरने निकलते हैं । यह इन्द्रके दिग्गजोंके समान सभी दिशाओंको सुशोभित करता है । दूसरा दक्षिण दिशाकी ओर वैभार गिरि है, यह पर्वत त्रिकोणाकार है। तीसरा दक्षिण-पश्चिमके मध्य त्रिकोणाकार विपुलाचल है, चौथा बलाहक नामक पर्वत धनुषके आकारका तीनों दिशाओंको घेरे शोभित है, पाँचवाँ पाण्डुक नामक पर्वत गोलाकार पूर्वोत्तर मध्यमें है। ये पांचों पर्वत फल-पुष्पोंके समूहसे युक्त हैं। इन पर्वतोंके वनोंमें वासु २ १. चउरस्सो पुवाए रिसिसेलो दाहिणाए वेभारो । णइरिविदिसाए विउलो दोण्णि तिकोणद्विट्ठदायारा ॥ पावसरिच्छो छिण्णो वरुणाणिलसोमदिसविभागेसु । ईसाणाए पंडू वण्णा सव्वे कुसग्गपरियरगा ।।-अधिकार १ गा० ६६-६७ पंचसेलपुरे रम्मे विउले पव्वदुत्तमे । णाणादुमसमाइण्णो देव-दाणव-वंदिदे । महावीरेण ऊत्थो कहियो भवियलोयस्स ।। ऋषिगिरिरैन्द्राशायां चतुरस्रो याम्यदिशि च वैभारः । विपुलगिरिनैऋत्यामुभौ त्रिकोणी स्थितौ तत्र ।। धनुराकारश्चन्द्रो वारुण-वायव्य-सामदिक्षु ततः । वृत्ताकृतिरेशान्यां पाण्डुः सर्वे कुशाग्रवृत्ताः ।। -धवला टोका भाग १ पृ० ६१-६२
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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