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________________ भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मयका अवदान और नेमिनाथके अतिरिक्त अवशेष बाईस तीर्थंकरोंकी निर्वाण प्राप्तिका गौरव उपलब्ध है । बिहार की भूमि इस अर्थ में श्रेष्ठ है, बड़भागिन है । श्री सम्मेद शिखर (पारसनाथ पर्वत), पावापुरी, चम्पापुरी ( नाथनगर - भागलपुर), राजगृह, गुणावा, मन्दारगिरि और कमलदह (गुलजारबाग पटना ) ये तीर्थ बिहार में सिद्धभूमि माने जाते हैं । ५८ तपोभूमि और ज्ञानभूमि, वे तीर्थ हैं; जहाँ पर तीर्थंकर या अन्य मुनिराजोंने तपस्या की हो - प्रव्रज्या ग्रहण की हो तथा घातिया कर्मोंको चूरकर कैवल्य प्राप्त किया हो । ये स्थान हैं राजगिरिके निकटवर्ती नील वनप्रदेश, ऋजुकूला नदीका तटवर्ती जम्भिका ग्राम, राजगृहकी पंच पहाड़ियाँ, कुलहा पहाड़' (हजारीबाग) आदि । इन स्थानोंमें तीर्थंकर अथवा मुनिराजोंने प्रव्रज्या ग्रहण की अथवा विश्वको आलोकित करने वाले ज्ञान-पुञ्जको प्राप्त किया था । आज भी इन भूखण्डोंसे ज्ञानकी प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। ये नीरव स्थान मानवको अपरिमित शान्ति और तृप्ति प्रदान करते हैं । जन्मभूमि तीर्थ वे हैं, जहाँ तीर्थकरों का जन्म हुआ हो । तीर्थकरोंके जन्म लेनेसे वह भूमि उनकी क्रीड़ाभूमि होती है, जिससे उनके पुण्यातिशयके कारण वहाँका कण-कण पवित्र होता है । बिहारके मिथिला प्रदेश में उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ और इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथका; राजगृह में बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथका एवं वैशालीके क्षत्रियकुण्ड ग्राम में अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामीका जन्म हुआ है । बारहवें तीर्थकर वासुपूज्यकी जन्मभूमि चंपा है। साधारण तीर्थ वे हैं, जहाँ प्राचीन या अर्वाचीन जिनालय हैं, जिनकी पूजा-वन्दना प्रतिदिन की जाती है। ऐसे तीर्थ बिहार में जहाँ-जहाँ जैनोंकी आबादी हैं, सर्वत्र । आरा, गया आदि प्रमुख हैं । बिहार में कुछ ऐसे भी प्राचीन तीर्थ हैं जिनका इतिहास आज तक अन्धकाराच्छन्न है | श्रावक पहाड़ और प्रचार पहाड़, ये दोनों जैनतीर्थ गया जिलेमें हैं; जहाँ जैन मूर्तियों के ध्वंसावशेष उपलब्ध हैं । सिद्ध भूमियाँ बिहार की सिद्धभूमियों में सबसे प्रमुख सम्मेदशिखर है । अतः क्रमानुसार सभी सिद्धभूमियोंका निरूपण करना आवश्यक है । श्री सम्मेद शिखर, इस स्थानका दूसरा नाम पार्श्वनाथपर्वत है, यह जिला हजारीबागके अन्तर्गत है । १. कुलुहा पहाड़ श्री शान्तिनाथ भगवान्‌की तपोभूमि है । २. मिहिलाए मल्लिजिणो पहवदिए कुंभअक्खिदोसेहि । मग्गसिर सुक्क एक्कदसीए संजादो || महिलापुरिए जादो विजयर्णारिंदे ण वप्पिलाए च । अस्सिणिरिक्खे आसाढसुक्कदसमीए णमिसामी || रायगिहे भुणिसुव्वयदेवो पउमासु मित्तराएहि । अस्सजुदवारसीए सिदपवसे सबणभे जादे ॥ सिद्धत्थरायपियकारिणीहि यरम्मि कुंडले वीरो । उत्तरफग्गुणिरिक्खे चित्तसियातेरसीए उप्पणो ॥ -तिलोयपण्णत्ति, चतुर्थ अधिकार, गाथा ५४४, ५४५,५५६, १४९
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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