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________________ बिहार के जैन-तीर्थ प्रस्तावना बिहारके जैनतीर्थ अक्षय, अक्षुण्ण भारतीय धार्मिकताके शाश्वत, उदीयमान, उज्ज्वल प्रतीक हैं । श्रावणके सघन गगन-पटमें जैसे कभी निशीथकी तारिकाएँ नीलवर्णके चंचल-अंचलको सौम्य हाससे हटाकर कठिन कठोर कोलाहलमयी इस भू को क्षणभरके लिए निहार लेती है और मुग्धा सी अपने कान्तिमय सुन्दर श्रीमुखको पुनः अंचलसे ढक लेती हैं। वैसे ही शान्त हृदयमें स्मृतियोंके अनेक स्तरोंके बीच इन तीर्थोकी पावन स्मृति विरागताको उत्पन्नकर प्राणोंकी श्रद्धाको झकझोर देती है । लगता है इस मर्त्यभूमिमें अनन्तकाल तक इन तीर्थोके प्रेम-प्रणयका अविरल प्रवाह उद्दाम रूपसे प्रवाहित होता रहे और इनके दर्शन-वन्दनसे चिरसंचित कर्मकालिमाको हम प्रक्षालित करते रहें । एक कल्पना उठती है कि बिहारके इन जैनतीर्थोके शुभ भाल पर षोड़श कलाकलित विधुने प्राचीनकालसे आगत अपनो कलंककालिमाको धोनेके लिए ही अपनी ज्योत्सनाको विकीर्ण किया है। प्राणोंका अमूर्तधर्म इन तीर्थोकी नैसर्गिक आभाग मूर्त हो गया है । जीवन की समस्त विरूपताओं, दुर्घर्ष पाशविकताके शिलाखण्डों, अधार्मिक प्रवृत्तियोंके शोषणजन्य रुद्र दृश्यावलियोंसे दूर ये तीर्थप्रान्त मानवको चरम शान्तिका सन्देश देते हुए धर्मप्रवर्तकोंका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । इनका धार्मिक वैभव युगोंके अन्तरालमें अपनी सुषमाका गौरवमय इतिहास छुपावे बहता आया है। हृदयको प्रकाण्ड निष्ठाके ये जीवित प्राण हैं। इनकी झलक चेतनाका वह विकम्पन है जो दानवको मानव. सरागीको विरागी बनाने में पूर्ण सक्षम हैं। स्वप्न जागरणके मूक मिलन पर ये एक सुषुप्त आह्लाद जगाते हैं । अहिंसा और सत्यका मौन भाषामें उपदेश दे मानवको सुमार्ग पर ले जाते हैं । भावुक, श्रद्धालु इन तीर्थोंमें विश्वास और श्रद्धाकी इकाइयोंमें फैली सारी मान्यताओंका अवलोकन करता है। इनकी अखण्ड शान्ति, मोहक प्राकृतिक दृश्य, अणु-अणुमें व्याप्त सरलता सहज ही दर्शकको अपनी ओर आकृष्ट करती है। गगन-चुम्बी शलराजोंके उत्तुङ्ग शृंगों पर निर्मित जिनालय प्रत्येक भावुककी हृत्तंत्रियोंको झंकृत करने में समर्थ हैं । अतएव "संसाराब्धेरपारस्य तरणे तीर्थमिष्यते'' यह सार्थकता इनमें विद्यमान है। वर्गीकरण जैन-संस्कृति और जैनकलाकी आदर्शोन्मुख उठान बिहारके इन जैनतीर्थोंको हम सुविधाके लिए निम्न वर्गोंमें विभक्त कर सकते हैं : सिद्धभूमि तीर्थ, तपोभूमि और ज्ञानभूमि तीर्थ, जन्मभूमि तीर्थ और साधारण तीर्थ । सिद्धभूमि तीर्थ वे हैं, जहाँसे कर्मजाल नष्टकर तीर्थकर और सामान्य केवलियोंने अजरअमर निर्वाणपद उपलब्ध किया है। कहना न होगा कि बिहारकी पुण्य धराको ऋषभनाथ १. आदिपुराण पर्व ४, श्लोक ८
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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