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________________ 37 स्साम ज्ज ज्जा प्राकृत भाषा प्रबोधिनी भूतकाल ईअ, सी, ही, ही भविष्यकाल हिइ हिन्ति, हिन्ते हिसि हित्था स्सं स्सामो स्सामि स्सामु हिए. हिइरे हिसे हि अनुज्ञा. उ न्तु सु, हि, ह मु मो इज्जसु इज्जहि विधिलिंग ज ज्जा ज्ज ज्जा ज ज्जा क्रियातिपत्ति ज्ज ज्जा नोट- कुछ धातुओं के रूप परिशिष्ट में उल्लिखित हैंसर्वनाम संज्ञा के स्थान पर जो आता है, उसे सर्वनाम कहते हैं, यथा-दीवायणो तत्थ वसइ। सो य अइदुक्करं बालतवमणुचरइ। अर्थात् वहां द्वीपायन रहता है और वह अत्यन्त कठोर बालतप करता है। उक्त वाक्य में 'सो' 'दीवायणो' के स्थान पर आया है। वाक्यों में सर्वनाम का प्रयोग करने से वाक्य सुन्दर बन जाते हैं। जिस संज्ञा के स्थान पर या उसके साथ जो सर्वनाम आता है, उसमें उसी के लिंग वचन होते हैं, यथा राम का नौकर क्षत्रियपुत्र था। वह दुर्बल होने पर भी निर्भय था = रामस्स भिच्चो खत्तियपुत्तो अत्थि। सो दुब्बलो वि निमओ अत्यि। यहां 'खत्तियपुत्त' पुल्लिंग और एकवचन है, अतः इसके स्थान पर प्रयुक्त होने वाला सर्वनाम 'सो' भी पुल्लिंग और एकवचन है। अनुवाद करने में कर्ता के अनुसार क्रिया का वचन और पुरुष होता है। कर्ता जब उत्तम पुरुष First person में रहता है तो क्रिया भी उत्तम पुरुष की होती है। कर्ता जब मध्यम पुरुष Second person में रहता है तो क्रिया मध्यम पुरुष की और कर्ता जब प्रथम पुरुष Third person में रहता है तो क्रिया प्रथम पुरुष की होती है।
SR No.032454
Book TitlePrakrit Bhasha Prabodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangitpragnashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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