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________________ परिशिष्ट २८९ , पूर्व की तरह एक योजन लंबे चौड़े और गहरे गड्ढे में एक दिन से लेकर सात दिन तक उगे हुए बालानों को ठसाठस भरो। वे बालाग्र आकाश के जिन प्रदेशों को स्पर्श करें, उनमें से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में समस्त प्रदेशों का अपहरण हो जाये, उतने समय को बादर क्षेत्रपल्योपम काल कहते हैं । दस कोटाकोटी बादर क्षेत्रपल्योपम का एक बादर क्षेत्रसागरोपम होता है । बादर क्षेत्रपल्य के बालाग्रों में से प्रत्येक के असंख्यात खण्ड करके पल्य में ठसाठस भर दो। उक्त पल्य में वे खण्ड आकाश के जिन प्रदेशों को स्पर्श करें और जिन प्रदेशों को स्पर्श न करें, उनमें से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेशों का अपहरण किया जा सके, उतने समय का एक सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम होता है। दस कोटाकोटी सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम होता है । पल्योपम और सागरोपम के उक्त तीन-तीन भेदों के बादर और सूक्ष्म का उपयोग यह है कि अपने उत्तर भेद का बोध हो सके। जैसे—बादर उद्घार पत्योपम और सागरोपम से सूक्ष्म उद्धार पत्योपम और सागरोपम सरलता से समझ में आ जाते हैं । सूक्ष्म उद्धार पल्योपम और सागरोपम से द्वीप, समुद्रों की गणना की जाती है तथा सूक्ष्म अद्धा पत्योपम और सागरोपम द्वारा देव मनुष्य, तिथंच और नारकों की आयु कर्मों की स्थिति आदि जानी जाती है सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम के द्वारा दृष्टिवाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार किया जाता है। इन पत्योपम और सागरोपम के स्वरूप को विशेष रूप से समझने के लिए अनुयोगद्वार, जीवसमास प्रवचनसारोद्धार, द्रव्यलोकप्रकाश, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि आगम एवं ग्रंथ देखिए । दिगम्बर साहित्य में पल्योपम का जो वर्णन है, वह पूर्वोक्त वर्णन से कुछ भिन्न है । उसमें क्षेत्र पल्योपम नामक कोई भेद नहीं है और न प्रत्येक पल्योपम के बादर और सूक्ष्म भेद किये हैं । इसके लिए सर्वार्थसिद्धि तत्त्वार्थराजवार्तिक और त्रिलोकसार ग्रंथ देखिए । २७. आयुबंध और उसकी अबाधा सम्बन्धी पंचसंग्रह में आगत चर्चा का सारांश आयुकर्म के सिवाय शेष ज्ञानावरणादि सात मूल और उनकी उत्तर प्रकृतियों के स्थितिबंध में उनका अवाधाकाल निश्चित है और वह उसमें गर्भित है वैसा आयुकर्म के स्थितिबंध में नहीं है। आयुबंध तथा उसकी अबाधा के सम्बन्ध में मतभेद दर्शाते हुए पंचसंग्रह, पंचम बंधविधिद्वार गाथा ३७-४१ तक जो चर्चा की गई है, उसका सारांश इस प्रकार है 'देवायु और नरकायु की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम और तिर्वचायु एवं मनुष्यायु की तीन पल्योपम है तथा चारों आयुओं की पूर्वकोटि की विभाग प्रमाण अबाधा है। प्रश्न – आयु के दो भाग बीत जाने पर जो आयु का बंध कहा है, वह असम्भव होने से चारों आय में घटित नहीं होता है । क्योंकि भोगभूमिज मनुष्य, तियंच तो कुछ अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक आयु शेष रह जाने पर परभव की आयु नहीं बांधते हैं परन्तु पल्य का असंख्यातवां भाग बाकी रहने पर ही परभव की आयु बांधते हैं, लेकिन उनकी आयु का विभाग बहुत बड़ा होता है जैसे कि तिर्वच मनुष्यों की आयु का त्रिभाग एक पल्य और देव एवं नारकों की आयु का त्रिभाग ग्यारह सागरोपम होता है । उत्तर - उक्त कथन तभी संगत होता यदि हमारे दृष्टिकोण को समझा होता क्योंकि यहां जिन और मनुष्यों की आयु एक पूर्वकोटि होती है, उनकी अपेक्षा ही एक पूर्वकोटि के लिए है और यह अबाधा भी भुज्यमान आयु में ही जानना चाहिये, परभव सम्बन्धी
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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