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________________ कहना चाहिये। यह सामान्य रूप से तीव्रता-मंदता को कथन किया । अब विस्तार से उसका विवेचन करते हैं ___घातिकर्मों और अप्रशस्त वर्ण, गंध, रस, स्पर्श तथा उपघात नाम, इन पचपन प्रकृतियों की स्थिति में जघन्य अनुभाग सबसे अल्प होता है, उससे द्वितीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा होता है, उससे भी तीसरी स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा होता है। इस प्रकार निवर्तनकंडक प्राप्त होने तक कहना चाहिये। जहां पर जघन्य स्थितिबंध के आरम्भ में होने वाले अनुभागबंधाध्यवसायस्थानों की अनकृष्टि समाप्त होती है, वहां तक के मूल से आरम्भ करके पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितियों को निवर्तनकंडक कहते हैं-निवर्तनकंडकं नाम यत्र जघन्यस्थितिबंधारम्भभाविनामनुभागबंधाध्यवसायस्थानानानुकृष्टिः परिसमाप्ता तत्पर्यन्ता मूलत आरभ्य स्थितयः पल्योपमासंख्येयभागमात्रप्रमाणा उच्यन्ते । अर्थात् इन स्थितियों के समुदाय को निवर्तनकंडक जानना चाहिये। निव्वत्तणा उ एक्किक्कस्स, हेट्ठोरि त जेठ्ठियरे। चरमठिईणुक्कोसो, परित्तमाणीण उ विसेसा ॥६६।। शब्दार्थ-निव्वत्तणा-निवर्तनकंडक से, एक्किक्कस्स-एक-एक, हेट्ठोरि-नीचे ऊपर की, तुऔर, जेटियरे-उत्कृष्ट और इतर (जघन्य), चरमठिईणुक्कोसो-अंतिम स्थितियों में चरम उत्कृष्ट, परित्तमाणीण-परावर्तमान, उ-और, विसेसा-विशेष । गाथार्थ-निवर्तनकंडक से एक नीचे की और एक ऊपर की स्थिति में उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा उत्कृष्ट स्थिति तक कहना चाहिये और अंतिम निवर्तनकंडक की स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्त गुणित ही कहना चाहिये। परावर्तमान प्रकृतियों में कुछ विशेषता है। विशेषार्थ-निवर्तनकंडक की चरम स्थिति में जघन्य अनुभाग से जघन्य स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्त गुणा होता है। उससे कंडक के ऊपर की प्रथम स्थिति में जघन्य अनुभाग अनंत गुणा होता है, उससे द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्त गुणा होता है । उससे नीचे की तृतीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है, उससे कंडक के ऊपर की तृतीय स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा होता है। इस प्रकार एक नीचे की स्थिति और एक ऊपर की स्थिति में यथाक्रम से उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग अनन्तगुण रूप से तब तक कहना चाहिये, जब तक उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा प्राप्त होता है । - कंडक प्रमाण स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अभी भी अनुक्त है, शेष सभी कह दिया गया है। अब कंडक प्रमाण स्थितियों के उत्कृष्ट अनुभाग को बतलाते हैं कि उस सर्वोत्कृष्ट स्थिति के जघन्य अनुभाग से कंडक प्रमाण स्थितियों की प्रथम स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्त गुणा कहना चाहिये। उससे भी अनन्तरवर्ती उपरितन स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है। इस प्रकार निरन्तर क्रम से उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण रूप से उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होने तक कहना चाहिये। इसी बात को बतलाने के लिए गाथा में 'चरमठिईणक्कोसो' यह पद दिया है। जिसका अर्थ
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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