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________________ कर्मप्रकृति ___उससे यवमध्य के उत्तरवर्ती (सप्तसामयिक आदि सर्व) स्थानों का स्पर्शनाकाल विशेषाधिक है। उससे कंडक के पूर्ववर्ती सभी अर्थात् उत्तर त्रिसामयिक से पूर्व चतुःसामयिक तक के स्थानों का एक जीव संबंधी स्पर्शनाकाल विशेषाधिक है । इसी प्रकार अध्यवसायस्थानों में जीवों का अल्पबहुत्व भी जानना चाहिये। _ विशेषार्थ-अतीत काल में एक जीव के उत्कृष्ट अर्थात् द्विसामयिक अनुभागबंधस्थान में स्पर्शनाकाल अल्प है। इसका आशय यह है कि भूतकाल में परिभ्रमण करते हुए जीव के द्वारा द्विसामयिक अनुभागबधस्थान अल्प ही स्पर्श किये गये हैं। जघन्य अनुभागबंधस्थान में अर्थात् प्राथमिक चतुःसामयिक स्थानों में अतीतकाल में स्पर्शनाकाल असंख्यात गुणा है और 'कंडगे तत्तिओ चेव'-कंडक में भी उतना ही है, अर्थात् उपरितन चतुःसामयिक अनुभागबंधस्थान में भी उतना ही है, जितना कि आद्य चतुःसामयिक स्थानों का है । इससे यवमध्य में अर्थात् अष्टसामयिक अनुभागस्थानों में स्पर्शनाकाल असंख्यात गुणित है। उससे कंडक के अर्थात् उपरिवर्ती चतुःसामयिक स्थानों के समुदाय रूप स्थान के उपरिवर्ती स्थानों में अर्थात् त्रिसामयिक अनुभागबंधस्थानों में स्पर्शनाकाल असंख्यात गुणित है । उससे यवमध्य के अधोवर्ती पंचसामयिक, षट्सामयिक और सप्तसामयिक अनुभागबंधस्थानों में स्पर्शनाकाल असंख्यात गुणा है, किन्तु स्वस्थान में स्पर्शनाकाल परस्पर समान है। इससे आगे क्रमशः यवमध्य के उपरिवर्ती चतु:सामयिक स्थान के समुदाय रूप कंडक के अधोवर्ती सभी अनुभागबंधस्थानों में जघन्य चतुःसामयिक पर्यन्त स्पर्शनाकाल समुदित रूप से विशेषाधिक है । उससे सभी अनुभागबंधस्थानों में स्पर्शनाकाल विशेषाधिक है। ___ इस प्रकार स्पर्शनाप्ररूपणा का कथन जानना चाहिये। सरलता से समझने के लिये जिसका स्पष्टीकरण निम्नलिखित प्रारूप में कि एक जीव भी अपेक्षा अनुभागस्थानों का स्पर्शनाकाल क्रम स्थान का नाम समय क्रम स्थान का नाम समय १. द्विसामयिक स्थानों का सर्वाल्प ८ यवमध्य से पूर्व सप्तसामयिक का पूर्वतुल्य २. प्रथम चतुःसामयिक का असंख्यात गुण ९ कंडक से पूर्व के पंचसामयिक का , ३. कंडक (उत्तर चतुःसामयिक)का पूर्वतुल्य १० , षट्सामयिक का ४. अष्टसामयिक का असंख्य गुण ११ , सप्तसामयिक का , त्रिसामयिक का १२ यवमध्य से उत्तर के सर्वस्थानों का विशेषाधिक - यवमध्य से पूर्व पंचसामयिक का १३ कंडक से पूर्व के सर्वस्थानों का ७. यवमध्य से पूर्व षट्सामयिक का पूर्वतुल्य १४ सर्वस्थानों का अब अल्पबहुत्वप्ररूपणा करते हैं-जीवप्पाबहुं इत्यादि । अर्थात् जिस प्रकार स्पर्शनाकाल का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार अनुभागबंधस्थानों के निमित्तभूत अध्यवसायों में वर्तमान जीवों का भी अल्पबहुत्व जानना चाहिये । वह इस प्रकार है
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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