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________________ सुहमणिपविसंता चिठ्ठता तेखि कामठिइकालो। कमसो असंखगुणिमो स्लो अणुभागठाणाई ॥' सक्ष्म अग्नि में प्रवेश करने वाले, अग्निकाय में अवस्थित और उनका कायस्थितकाल क्रम से असंख्यात गुणित प्रमाण वाला होता है और उनसे भी अनुभागस्थान असंख्यात. गुणित हैं। . इस कश्चन का ग्रह भाव है कि जो जीव एक समय में सूक्ष्म अग्निकाय के मध्य में प्रवेश कर उत्पन्न होते हैं, वे सबसे कम हैं, फिर भी वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं । उनसे भी वे जीव असंख्यात गुणित हैं जो अग्निकाय रूप से अवस्थित हैं और उनसे भी अग्निकाय की स्थिति का काल असंख्यात गुणित होता है और उससे भी अनुभागबंधस्थान असंख्यात गुणित होते हैं। - अब ओजोयुग्मप्ररूपणा करते हैं । ओजोयुग्मप्ररूपणा ___ओज विषमसंख्या को और युम्म समसंख्या को कहते हैं। उनकी प्ररूपणा इस प्रकार है कि यहाँ पर किसी एक विवक्षित राशि को स्थापित करना चाहिये और उसमें कलि, द्वापर, त्रेता और कृत यग संज्ञा वाले चार से भाग देना चाहिये । भाग देने पर यदि एक शेष रहता है तो वह राशि पूर्व पुरुषों की परिभाषा के अनुसार 'कल्योज' कहलाती है, यथा-तेरह (१३) । यदि भाग देने पर दो शेष रहते हैं तो वह राशि द्वापरयुग्म' कहलाती है, जैसे-चौदह (१४) और यदि भाग देने पर तीन शेष रहते हैं तो वह राशि चतौन' कहलाती है, जैसे-पन्द्रह (१५) और जब भाग देने पर कुछ भी शेष नहीं रहता है, किन्तु संपूर्ण राशि से वह राशि निःशेष हो जाती है, तब 'कृतयुग्म' कहलाती है, जैसे--सोलह (१६)। कहा भी है चउदस दावरजुम्मा, तेरस कलिओज तह य कडजुम्मा । सोलस तेभोजो वसु, अनरसेवं खु विनेया ॥ - अ-चौदह-यह द्वापरयुग्म राशि है, तेरह-यह कल्योज राशि है, सोलह-कृतयुग्म राशि और पन्द्रह-इस राशि को वेतौज ानमा चाहिये। अब इनमें अविभाग आदि जिस प्रकार की राशि रूप में हैं, उस प्रकार की राशिप्रमाण को बतलाने के लिये पर्यवसानप्ररूपणा करते हैं। . १. पंचसंग्रह, बंधनकरण गाथा ५७ २. विषमसंख्या (१, ३, ५ आदि) को ओज और समसंख्या (२, ४, ६ आदि) को युग्म कहते हैं। जिस संख्या को चार से भाग देने पर १ शेष रहे, उसे कल्योज, २ शेष रहे उसे द्वापरयुग्म, ३ शेष रहे उसे तौज और कुछ भी शेषन स्हे उसे कृतयुग्म कहते हैं। जैसे कि ४) १४ ( ३ ४ )१५ (३ ४) १६ (४ १२ . १२.. १ कल्योज २ द्वापरयुग्म ३ तीज • कृतयुग्म
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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