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________________ बंधनकरण ११३ चाहिये । इस प्रकार उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए पूर्वोक्त क्रम से दूसरा षट्स्थानक भी पूरा कहना चाहिये । इसी प्रकार शेष षट्स्थानक भी कहना चाहिये और उन्हें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि वे असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों की राशिप्रमाण होते हैं । इसी आशय को प्रगट करने के लिये गाथा में 'छट्ठाणमसंखिया लोगा' पद दिया है । अर्थात् षट्स्थानवृद्धि वाले अनुभागबंधस्थान, असंख्यात लोकाकाश प्रदेशों का. जितना प्रमाण है, तत्प्रमाण होते. हैं । . . प्रश्न-आपने जो प्रथम अनुभागबंधस्थान के प्रमाण को सर्व जीवराशि के प्रमाण वाली राशि से भाग दिया है, सो वह यहाँ पर रसाविभाग की अपेक्षा से अथवा परमाणुओं की अपेक्षा से अथवा स्पर्धकों की अपेक्षा से दिया है ?. इनमें से रसाविभाग की अपेक्षा का. भाग संभव नहीं है । क्योंकि प्रथम स्थान से, द्वितीय स्थान में भी रसाविभाग संख्यात आदि के गुणाकार से प्राप्त होते हैं । वह इस प्रकार-.. प्रथम स्थान के प्रथम स्पर्धक की प्रथम वर्गणा में रसाविभाग अनन्त होते हैं। फिर भी असतकल्पना से चार वर्गणा का एक स्पर्धक माना · जाये और पहली वर्गणा में रसाविभाग का प्रमाण यदि सात (७) माना जाये तो दूसरी वर्गणा में रसाविभाग आठ (८), तीसरी वर्गणा में नौ (९) और. चौथी वर्गणा - में दस (१०) होंगे।' इस प्रकार एक स्पर्धक (७+++९+ १०=३४) चौंतीस संख्या प्रमाण रसाविभाग वाला होता है। उससे ऊपर एक-एक की उत्तरवृद्धि से रसाविभाग . प्राप्त नहीं होते हैं, किन्तु सर्व जीवों से अनन्तगुणित अधिक प्राप्त हात हूँ। . . ........ ...... ................... . ___ उनको असत्कल्पना से सत्रह (१७) संख्या माना जाये तो उतने रसाविभाग दूसरे स्पर्धक की प्रथम वर्गणा में सिद्ध होते हैं । उससे आगे उसी दूसरे स्पर्धक की दूसरी वर्गणा में अठारह (१८), तीसरी वर्गणा में उन्नीस (१९) और चौथी वर्गणा में बीस (२०) रसाविभाग प्राप्त होते हैं । यह दूसरा स्पर्धक है अर्थात् दूसरे स्पर्धक में रसाविभागों का प्रमाण (१७+१८+१९+२० =७४) चौहत्तर होता है । पुनः इससे भी आगे एक-एक की उत्तरवृद्धि से रसाविभाग प्राप्त नहीं होते है, किन्तु सर्वजीवों के प्रमाण से अनन्तगुणित अधिक प्राप्त होते हैं । - - ___ उनको यहाँ असत्कल्पना से सत्ताईस (२७) जानना चाहिये । ये सत्ताईस (२७) संख्या प्रमाण रसाविभाग तीसरे स्पर्धक की प्रथम वर्गणा में हैं। तदनन्तर दूसरी वर्गणा में अट्ठाईस (२८), तीसरी वर्गणा में उनतीस (२९) और चौथी वर्गणा में तीस (३०) रसाविभाग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इस तीसरे स्पर्धक में (२७+२८+२९+३० = ११४) एक सौ चौदह रसाविभाग प्राप्त होते हैं । इससे आगे फिर एक-एक रसाविभाग आदि की अधिक वृद्धि से रसाविभाग प्राप्त नहीं होते हैं किन्तु सर्व जीवों से अनन्तगुणित अधिक होते हैं । १. समान जातीय समसंख्यक पुद्गलों का समह वर्गणा का लक्षण होने से तथा एक के अनन्तर दूसरी होने के क्रम से यहां पहली, दूसरी आदि वर्गणाओं में क्रमशः एक-एक संख्यावृद्धि का संकेत किया है । इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिये।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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