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________________ कर्मप्रकृति तेजसशरीरवर्गणा..... आहारकशरीर की अग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्धों की तैजसशरीर के ग्रहणयोग्य जघन्य वर्गणा होती है । उससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि तैजस-ग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा प्राप्त होती है। तैजसशरीर की ग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिक होने पर जघन्य अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है। इससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उत्कृष्ट अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है । भाषावर्गणा - उस उत्कृष्ट अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप जघन्य भाषाप्रायोग्य ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है। उन पुद्गलों को ग्रहण करके जीव सत्य आदि भाषा रूप से परिणमित कर और अवलंबन लेकर छोड़ता है-प्रयोग करता है। इससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप भाषाप्रायोग्य वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उत्कृष्ट भाषाप्रायोग्य ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है। इससे आगे एक परमाणु अधिक होने पर अग्रहणप्रायोग्य जघन्य वर्गणा प्राप्त होती है । इससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि अग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा प्राप्त होती है। जघन्य से उत्कृष्ट विशेषाधिक है और यह अधिकता उसी की जघन्य वर्गणा से अनन्तवां भाग है। श्वासोच्छ्वासवर्गणा .:: उस अग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गमा से आगे एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप जघन्य प्राणापान (श्वासोच्छ्वास)-प्रायोग्य ग्रहण वर्गणा प्राप्त होती है। उन पुद्गलों को ग्रहण करके प्राणी श्वासोच्छ्वास रूप से परिणमित कर और आलंबन लेकर छोड़ता है-प्रयोग करता है । इससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये , जब तक कि प्राणापानप्रायोग्य उत्कृष्ट ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है। इस प्राणापानप्रायोग्य उत्कृष्ट ग्रहणवर्गणा से एक परमाणु अधिक होने पर जघन्य अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है। उससे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उत्कृष्ट अग्रहम-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है। मनोवर्गणा .. ..... . . इस अग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप मन के प्रायोग्य जघन्य ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है । उन पुद्गलों को ग्रहण करके जीव सत्य आदि मनोरूप से परिणमित कर और आलंबन लेकर प्रयोग करता है। उससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि मनःप्रायोग्य उत्कृष्ट ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है। इस उत्कृष्ट मनःप्रायोग्य ग्रहणवर्गणा से एक परमाणु अधिक होने पर जघन्य अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है। इससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उत्कृष्ट अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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