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________________ ६९ बंधनकरण ___ इन वर्गणाओं को अग्रहण-प्रायोग्य औदारिक शरीर के प्रति बहुत परमाणुओं द्वारा निष्पन्न होने और सूक्ष्म परिणाम की अपेक्षा से और वैक्रिय शरीर के प्रति स्वल्प परमाणु वाली होने से और स्थूल परिणमन रूप होने की अपेक्षा जानना चाहिये। इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिये। वैक्रियशरीरवर्गणा इस पूर्वोक्त अग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप वैक्रियशरीर की ग्रहण-प्रायोग्य जघन्य वर्गणा होती है। उससे दो परमाणु अधिक स्कन्ध रूप वैक्रियशरीर ग्रहण-प्रायोग्य दूसरी वर्गणा होती है। इस प्रकार तब तक एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप वैक्रियशरीर के ग्रहण करने योग्य वर्गणायें कहना चाहिये, जब तक कि वैक्रियशरीर की ग्रहणप्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा आती है । ये वर्गणायें भी उसी वैक्रियशरीर की ग्रहण-प्रायोग्य जघन्य वर्गणा से विशेषाधिक हैं और यह विशेषाधिक उसी की जघन्य वर्गणा के परमाणुओं का अनन्तवां भाग जानना चाहिये। उक्त वैक्रियशरीर की ग्रहण-प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु [अधिक रूप जघन्य अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा है। उससे दो परमाणु अधिक स्कन्ध रूप दूसरी अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा होतो है। इस प्रकार एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उत्कृष्ट अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है । ये वर्गणायें जघन्य वर्गणा से अनन्तगुणी हैं। यहाँ पर गुणाकार अभव्य जीवों से अनन्तगुणा और सिद्धों के अनन्तवें भाग राशि प्रमाण है। आहारकशरीरवर्गणा इस उत्कृष्ट अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणा आहारकशरीर के ग्रहणप्रायोग्य होती है और वह जघन्य है। उससे दो परमाणु अधिक स्कन्ध रूप दूसरी आहारकशरीर ग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा होती है । इस प्रकार एक-एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप आहारकशरीर की ग्रहण करने योग्य उत्कृष्ट वर्गणा प्राप्त होती है। जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा उसके अनन्तवें भाग से विशेषाधिक होती है। ___आहारकशरीर की ग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कन्ध रूप अग्रहणप्रायोग्य जघन्य वर्गणा होती है। उससे एक-एक परमाण अधिक स्कन्ध रूप अग्रहण-प्रायोग्य वर्गणा तब तक जानना चाहिये, जब तक उत्कृष्ट अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा प्राप्त होती है। इस अग्रहण-प्रायोग्य जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा अभव्य जीवों से अनन्तगुणी और सिद्धों से अनन्तवें भाग राशि प्रमाण से अनन्तगुणो जानना चाहिये। ... यहाँ चूर्णिकार आदि कुछ आचार्य औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर की ग्रहणप्रायोग्य वर्गणाओं के अन्तराल में अग्रहणप्रायोग्य वर्गणायें स्वीकार नहीं करते हैं, किन्तु विशेषावश्यकभाष्य आदि में (श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आदि सैद्धान्तिक आचार्यों ने) अग्रहणप्रायोग्य वर्गणायें स्वीकार की हैं। इसलिये उनके मत से यहाँ पर कही हैं।' १. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ६३३-६३७ तक देखिये।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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