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________________ ६. भिक्खु दृष्टांत कीड़ी न कीड़ी सरध सो सम्यक्त्व के कीड़ी सम्यक्त्व ? जद ते बोल्यो - कीड़ी ने कीड़ी सरधै ते सम्यक्त्व । कड़ी मारवा रा त्याग किया तिका दया के कीड़ी रही जिका दया ? जद ऊ बोल्यौ -कीड़ी रही तिका दया । जद स्वामीजी बोल्या - कीड़ी बायरा सूं उड़ गई तौ दया उड़ गई ? जद ऊ विमासी विचारनै बोल्यो - कीड़ी मारवा रा त्याग किया तिका या पण कीड़ी रहीं सो दया नहीं । जद स्वामीजी बोल्या - जतन दया रा करणा के कीड़ी रा करणा ? जद उ बोल्यौ -- जतन दया रा करणा । १५०. ते ठीक हो छँ कि हि कौ -सूत्र मैं साधू नै जीव राखणा कह्या । जद स्वामीजी बोल्या - एतौ ठीक ही है । ज्यूं रा ज्यू राखणां किहि नै दुख देणौ नहीं । १५. इसा अजाण है भेषधारघां रा श्रावकां रे पूरी पिछाण नहीं, तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयौ - कोई भांड साधू रो रूप बणायनै आयो । तिनै पूछे थे किणरा टोळा रा ? जद तिण कौ - हे डूंगरनाथजी रा टोळा रा । थांरौ नाम कांइ ? कहै - म्हारो नाम पत्थरनाथ । कां भणीया हो ? तब ते कहै -भणीयौ तौ कांइ नहीं पिण बाइसटोळा रा तौ चोखा ने तेरापंथी खोटा या जाणूं छू । जद थे मोटापुरुष | तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं इम कहि वांदे | इसा ari है पण न्याय निरणौ नहीं । १५२. भगवती किसो अधम्मो मंगल है ? स्वामीजी भगवती बांचतां एक जणौ आय बोल्यो – स्वामी ! धम्मो मंगल कहौ । जद स्वामीजी बोल्या - भगवती सुणौ । जद ते बोल्यौ - स्वामीजी ! 'धम्मो मंगल सुणावौ' । जद स्वामीजी बोल्या -- 'भगवती किसी अधम्मौ मंगल है' । यो ही धम्मो मंगल ईज है । गांम जातां सकुन लेवै गधा तीतर बोलावे, ज्यूं सुणी ते बात और, अनै निर्जरा हेतै सुणौ ते बात और ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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