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________________ दृष्टांत : १४९ ___जद साध बोल्या-भगवान क्यांने मेहलै ? आगै माठा कर्म कीया तिणसं कसाइ रै कुल ऊपनी । वले इसा कर्म करै तो नरक मै जाय पड़सी। इम भिन्न-भिन्न करने समझायौ। बकरा मारवा रा जावजीव पचखांण कराया । कसाइ बोल्यौ -म्हारै घरै बीस बकरा बंध्या है सो आप कहो तो नीलो चारौ नीरू नै काचो पाणी पाऊं। आप कहौ तौ एवड़ मै ऊछेरू ? आप कहौ तौ कडि घालने बाजार मै छोडूं। आप कहो तो आपने आण सूपू । धोवण उन्हौ पाणी पाज्यो। सूखी चारौ न्हाखजो। साधां रो एवड़ न्यारौ उछेरौ। जब साध बोल्या थारे सूसा रौ जाबतौ कीजै। संस चोखा पालजै। इम इंसां री भळावण देवै पिण बकरां री भळावण न देवै । ___ कसाइ साधां रा गुण गावै-मोनें हिंस्या छोड़ाइ तार्यो। बकरा जीवता बचीया ते पिण हरखत हुआ। कोई एक पुरुष पर स्त्री नो लंपट । ते साधां कनै पर स्त्री गमन नो पाप सुणोन, त्याग किया घणौ राजी होय साधां रा गुण गावे-आप मौनें डूबता ने तार्यो । नरक जातां नै राख्यौ। अनै उवा स्त्री शील आदर्यो सुणनै उणरे कनै आयनै बोली-हूं तो थां ऊपर इकतारी धार बैठी थी। सो के तो म्हारी कह्यौ मानो मो साग गृहवासौ करौ, नहीं तो कूवा मै जाय पड़तूं। जब तिण कह्यौ-मोनें तो उत्तम पुरुषां पर स्त्री नो घणौ पाप बतायौ । तिण सू म्है त्याग कीधा । म्हारै तौ थां सूं काम नहीं । जब स्त्री क्रोध रै वस कूवा मै जाय पड़ी। हिवै चोर समज्या अन धन धणी रै रह्यौ। कसाइ समज्यो नै बकरा बच्या लंपट शील आदर्यो नै स्त्री कू वा मै पड़ी। चौर कसाइ लंपट यां तीनां नै तारवा नै उपदेश साधां दीयो। आं तीनां ने साधा ताऱ्या। ए तीन इ तिरया। तिण रौ साधां नै धर्म थयो। अनै धणी रौ धन रह्यो, बकरी जीवां बच्या तिणरौ तौ धर्म अनै स्त्री कूवा मै पड़ी तिण रो पाप साधां में नहीं। केइ अज्ञानी कहै—जीव बच्या अन धन रह्यो तिण रौ धर्म । ती उणरी श्रद्धा रै लेखै स्त्री मूई, तिण रौ पाप पिण लागै । १४९. जतन दया रौ के कीड़ो रो? किण हि कह्यौ जीव बचीया ते धर्म । जद स्वामीजी बोल्या-कीड़ी नै कीड़ी जाणे सो ज्ञान के कीड़ी ज्ञान ? जद ऊ बोल्यौ-कीड़ी ने कीड़ी जाणे सो ज्ञान ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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