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________________ दृष्टांत २०-२३ २०. जिसौ गुळ विसौ मीठो तिण पीपार मै एक गैबीरांम चारण भगत थयौ । ते लोकां मै पूजावै । भगतां नै लापसी जीमावै । तिणनै लोकां सीखायौ तूं भगतां नै लापसी जीमावै, तिणमै भीखणजी पाप कहै। जब ते गेबीराम घोटौ हाथ मै, गूघरा घमकावतौ स्वामीजी कने आयौ । कहै-हे भीखण बाबा ! हूं भगतां नै लापसी जीमाऊं सौ कांई हुवै ? स्वामीजी बोल्या-लापसी मै जैसो गुळ घाल जैसी मीठी हुदै । इम सुणने घणौं राजी हुवौ । नाचवा लागौ। भीखण बाबै भलौ जाब दीधौ। लोक बोल्या-भीखणजी पहिला उत्तर जाणे घड़ राख्यौ ईज हूंतौ । २१. खेती गांव रै गोरवे संवत् अठारे तेपनै सोजत मै चोमासौ कीधौ। लोक घणां समज्या । जब किणहि कह्यौ-भीखणजी ! उपगार तो आछौ कियौ। घणां नै समझाया। जद स्वामीजी बोल्या-खेती कीधी, पिण गाम रै गौरव है सो गधा आय न वड़ीया तौ टिकसी, बाकी काम कठिण । २२. लाडू खांडौ है, पिण चोगुणो रौ । स्वामीजी नीकळ्या । साधवियां न हुई तठा पहिला किणहि कह्यौथारे तीरथ तीन हीज है । लाडू है पिण खांडौ है । जद स्वामीजी बोल्या-खांडौ है पिण चौगुणी रौ है । २३. निखेदणौ जरूरी रीयां मै बखाण वाचतां आचार नी गाथा सुणने मोतीराम बोहरौ बोल्यौ-भीखणजी ! बांदरौ बूढौ हूऔ हतौ ही गुळाच खेलणी छौड़े नहिं । ज्यूं थे बूढा थया तौ ही बीजा नै निषेधणा छोड्या नहीं। " जद स्वामीजी बोल्या-थोरै बाप हुंड्यां लिखी, थारै दादै हुंड्यां लिखी, पाटा-पाटी थेई संवेट्या कोई नहीं। दीपचंद मुणोत मन मै धरो देई आपरा हेतू मित्रां ने कह्यौ-भीखणजी रौ वचन इसौ निकल्यौ सो पाटा-पाटी समेटतौ दीसै है। जब त्यां आपरा आपरा रुपइया खांच लिया। पछै थोड़ा दिनां मैं परवार गयो । पाटा-पाटी सांवट लिया।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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